my blog is mutiny against all conventional old things , which is a baggage to a common man .hence it is my voice against all untruthful things happening in the society .
Thursday, December 3, 2009
सेकुलर सब्द का अर्थ ये मीडिया वाले और ये राजनीतिज्ञ क्या जाने ?
मैं सेकुलर हूँ , मैं ये जानता हूँ , मुझे इसकी परिभाषा भी मालूम है , पर मुझे शक होता है की क्या इन मीडिया , और इन राजनीतिक पार्टियों को ये मालूम है , मुझे तो ऐसा नहीं लगता , और उनका ये सेकुलर बहुत ही खतरनाक है , कई बार महसूस होता है की ये मीडिया वाले ये नेता लोग किसी एक धरम के लोगों के निंदा करके और दूसरे धर्मों के गलत कामो को छिपा कर सेकुलर बनाना कहते हैं , जैसे की मालेगांव धामके के बाद मीडिया और कई राजनितिक दलों ने इसे भारत में हिन्दू आतंकवाद की शुरुवात बताई और कई बार हिन्दू आतंकवाद को नया खतरा बताने की कोशिस की , जैसे की मुस्लिम धरम को आतंकवाद से जोड़ा जाता है , ये बात अलग है की जयादातर मामलो में मुस्लिम ही ऐसे घटनाओ के पीछे होते हैं , तब ये कहा जाता है की मस्लिम धरम से इसका कोई नाता नहीं , और ये बात सही है , ये बात स्वयं ये मीडिया वाले , राजनितिक दल बार बार दोहराते रहते है , क्योंकि सेकुलर का तमगा जो लगाना है , पर ये बात उस समय कहा चली जाति है जब ये हिन्दू धरम को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिस करते हैं . दरसल सेकुलर शब्द बहुत ही वृस्तित शब्द है , ये केवल उसके शाब्दिक अर्थ तक ही सीमित नहीं है , और ये बात इन गधे मडिया वाले और राजनीतिकों को समझ नहीं आएगी , सेकुलर का केवल ये मतलब नहीं है की सभी धरम के लोग एक सामान है और सभी अपने अपने धरम के अनुसार काम कर सकते हैं , ये अर्थ तब तक पूरा नहीं है जब तक लोग ये नहीं समझ जाते जिस तरह से वास्तविक समय मैं धरम अपनी कार्यप्रणाली चला रहे हैं उससे ज्यादातर आबादी सांप्रदायिक ही रहेगी , जब तक हम इंसान होते हुए भी धरम का नाम देकर अपने को अलग बताते रहेंगे तब तक सेकुलर प्राणी आपको ढूडने पर ही मिलेगा , इन मीडिया और इन राजनीतिज्ञों की क्या औकात की ये सेकुलर बन सके .
Wednesday, December 2, 2009
हिन्दू धरम और जाति नामक जहर
हिन्दू धरम और जातियों का एक दूसरे से चोली और का दामन नाता है ,ये एक दूसरे से इस ढंग से जुड़े हुए हैं की अगर कुछ भी अलग होने के कोशिश करेगा तो किसी न किसी का नंगा पन तो सामने आएगा ही , चलिए मैं आपको हिन्दू धरम में जातियों की उत्पत्ति और बाद में इसका परिवर्तित स्वरुप और इससे होने वाले परिणामों की चर्चा करूंगा . अगर कोई भी चीज मेरी बनाई लगे तो आप सब मुझे कह सकते हैं अगर नहीं तो कृपा करके मेरे पक्ष में ही लिखे दरसल मैं बहुत कट्टर हूँ .
जातियों का निर्माण कुछ ऐसे हुआ , कुछ हजारों साल पहले जब देश , राज्य जिले जैसे परिकल्पना नहीं थी तब गाँव अकेले मिलजुल कर अपनी जरूरतें पूरी करते थे , तो उन्होंने एक व्यवस्था बनाई की जिससे सही ढंग से काम चल सके.
वो व्यवस्था इस प्रकार थी .
जब भी किसी परिवार मैं कोई बच्चा पैदा होता तो उसके सामने सभी जरूरी काम के वर्गों के सामान रख दिए जाते और बच्चा जिस तरफ रुख कर देता वो काम उसका हो जाता और वो अपनी जिन्दगी उसी काम में समर्पित कर देता . ये एक निष्पक्ष प्रणाली थी ,तब परिवर्तन कैसे आये? कैसे ये प्रणाली इतनी दूषित कैसे हो गयी ? इसका उत्तर भी है मेरे पास .
जिन व्यक्तियों को पढने लिखने काम मिला उन्होंने समाज के साथ साजिश की उन्हें ये लगा की कैसे उनका पुत्र एक शूद्र का काम कैसे कर सकता है , समाज में बुद्धिमान होने के कारन उन्होंने व्यवस्था अपने हिसाब से मोड़ ली . तभी से इन जातियों का जन्म हुआ , तभी से पंडित का बेटा पंडित , वैश्य का बेटा वैश्य , शुद्र का बेटा शूद्र होने लग गया . और दुःख इस बात का है की आज इस पढ़े लिखे समाज में इन घटिया चीजों को सही ठहराया जाता है .
अब आज मैं क्यों इस विषय को उठा रहा हूँ , इससे होने वाले परिणामों के कारन .
परिणाम संख्या एक - जातीय बैर , उची जातियों , और नीची जातियों के बीच में लड़ाई .
उची जातियों के बीच आपस में लड़ाई ( जैसे पंडितों और ठाकुरों , ठाकुरों -ठाकुरों के बीच में लड़ाई )
और बहुत से कारन है जिन्हें बताने की जरूरत भी नहीं है . लेकिन इनसे भी जयादा परेशान करने वाली चीजें वो है जिसके कारन लोग इसका राजनीतक फायदा उठाकर समाज को तोड़ने की कोशिस कर रहे है , मैंने कहीं पढ़ा है , हर साल कुछ नीची जाति के लोग बौध धरम स्वीकार कर रहे हैं , कुछ लोग ईसाई धरम स्वीकार कर रहे हैं , मुझे इन धरम परिवर्तनों से कोई दिकत नहीं दिक्कत है तो सिर्फ वो कडुवाहट जो इसका कारन बन रहे हैं . और जो ये धरम परिवर्तन करवाते है वो इस जहर का फ़ायदा उठाते हैं . अब आप लोग समझदार हैं समझिये .
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जातियों का निर्माण कुछ ऐसे हुआ , कुछ हजारों साल पहले जब देश , राज्य जिले जैसे परिकल्पना नहीं थी तब गाँव अकेले मिलजुल कर अपनी जरूरतें पूरी करते थे , तो उन्होंने एक व्यवस्था बनाई की जिससे सही ढंग से काम चल सके.
वो व्यवस्था इस प्रकार थी .
जब भी किसी परिवार मैं कोई बच्चा पैदा होता तो उसके सामने सभी जरूरी काम के वर्गों के सामान रख दिए जाते और बच्चा जिस तरफ रुख कर देता वो काम उसका हो जाता और वो अपनी जिन्दगी उसी काम में समर्पित कर देता . ये एक निष्पक्ष प्रणाली थी ,तब परिवर्तन कैसे आये? कैसे ये प्रणाली इतनी दूषित कैसे हो गयी ? इसका उत्तर भी है मेरे पास .
जिन व्यक्तियों को पढने लिखने काम मिला उन्होंने समाज के साथ साजिश की उन्हें ये लगा की कैसे उनका पुत्र एक शूद्र का काम कैसे कर सकता है , समाज में बुद्धिमान होने के कारन उन्होंने व्यवस्था अपने हिसाब से मोड़ ली . तभी से इन जातियों का जन्म हुआ , तभी से पंडित का बेटा पंडित , वैश्य का बेटा वैश्य , शुद्र का बेटा शूद्र होने लग गया . और दुःख इस बात का है की आज इस पढ़े लिखे समाज में इन घटिया चीजों को सही ठहराया जाता है .
अब आज मैं क्यों इस विषय को उठा रहा हूँ , इससे होने वाले परिणामों के कारन .
परिणाम संख्या एक - जातीय बैर , उची जातियों , और नीची जातियों के बीच में लड़ाई .
उची जातियों के बीच आपस में लड़ाई ( जैसे पंडितों और ठाकुरों , ठाकुरों -ठाकुरों के बीच में लड़ाई )
और बहुत से कारन है जिन्हें बताने की जरूरत भी नहीं है . लेकिन इनसे भी जयादा परेशान करने वाली चीजें वो है जिसके कारन लोग इसका राजनीतक फायदा उठाकर समाज को तोड़ने की कोशिस कर रहे है , मैंने कहीं पढ़ा है , हर साल कुछ नीची जाति के लोग बौध धरम स्वीकार कर रहे हैं , कुछ लोग ईसाई धरम स्वीकार कर रहे हैं , मुझे इन धरम परिवर्तनों से कोई दिकत नहीं दिक्कत है तो सिर्फ वो कडुवाहट जो इसका कारन बन रहे हैं . और जो ये धरम परिवर्तन करवाते है वो इस जहर का फ़ायदा उठाते हैं . अब आप लोग समझदार हैं समझिये .
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धरम और जाति के ताबूत पर कील हम जैसे युवा गाड़ेंगे .
आज फिर मन किया थोडा जहर उगलें अरे डरिये नहीं, अरे ये जहर उनके लिए है जो अपने आप को कुछ ख़ास समझते हैं , एक भाई जान है मेरे घर के पास ही रहतें हैं पढ़े लिखे हुए हैं , इंजिनियर हैं अच्छी जगह काम करतें हैं कुछ हाँ में हाँ मिलाने वाले लोग भी हैं उनके इधर उधर , थोड़ी बड़ाई कर दो तो कहतें हैं अरे हम तो बस एक साधारण इंसान हैं , पर कई सारे काम करते हिचकते हैं कहतें हैं ये काम नहीं कर सकते , अरे उनकी इंजिनियर बॉडी पर सूट नहीं करेगा न , और धरम , जाति , और कई मुद्दे पर बेबाकी से कहतें है में ये सब कुछ नहीं मानता , पर क्या करून माँ , पिता जी को दुखी नहीं कर सकता , ऐसे लोगों से भरा पड़ा है हमारा समाज , कहने को सब समझते हैं पर कुछ नहीं समझते , अब दुसरे तरह के लोग हैं वो भी मेरे दोस्त हैं , उनसे बात करो की किस तरह धर्मों का स्वरुप कट्टरता को बढ़ावा देता और उन्हें उनके धर्म की गलतियां बतानें लगो तो इसे एक दम नकारते हुए वो लोग तुरंत मेरे धरम की कमियां गिनाना चालू कर देते हैं , जैसे की कभी किसी व्यक्ति से अपनी परेशानी की बात करो तो किस तरह वो अपनी परेशानिया बतानें लगता है और दुसरे की परेशानियों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है , ये आदमी का स्वभाव है चाहे जितनी कोशिश कर लो वो अपना कमीना पन छोड़ने से साफ़ मना कर देता है मुझे लगता है लोग सच सुनना पसंद नहीं करते , हर जगह सभी गधे पन की बड़ी बड़ी मिशालें खड़ी करने में लगें हैं , हर कोई अपने गधेपन को दूसरे के गधेपन से ऊचा दिखाने में लगा है , अरे भाइयों पढ़े लिखे हो थोडा इंसानों जैसा बर्ताव करो , ये क्या हिन्दू मुस्लिम , ईसाई , पंडित, ठाकुर लगाए बैठे हो . चलो कोई बात नहीं हम जैसे युवा इस धरम ,जाति को ख़तम करके इसकी ताबूत में कील गाड़ेंगे . अब वो दिन दूर नहीं . साथ में आ जाओ वर्ना भविष्य तुम जैसे लोगों का स्वागत नहीं करता .
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