Wednesday, December 2, 2009

हिन्दू धरम और जाति नामक जहर

हिन्दू  धरम  और जातियों  का एक दूसरे से चोली और का दामन नाता है ,ये एक दूसरे से इस ढंग से जुड़े हुए हैं की अगर कुछ भी अलग होने के कोशिश करेगा तो किसी न किसी का नंगा पन  तो सामने आएगा ही  , चलिए मैं  आपको हिन्दू धरम में जातियों की  उत्पत्ति और बाद में  इसका परिवर्तित स्वरुप और इससे होने वाले परिणामों की चर्चा करूंगा .  अगर कोई भी चीज मेरी बनाई लगे तो आप सब मुझे कह सकते हैं अगर नहीं तो कृपा करके मेरे पक्ष में ही लिखे दरसल मैं  बहुत कट्टर हूँ .

जातियों का निर्माण कुछ ऐसे हुआ , कुछ हजारों साल पहले जब देश , राज्य जिले जैसे परिकल्पना नहीं थी तब गाँव अकेले मिलजुल कर अपनी जरूरतें पूरी करते थे , तो उन्होंने एक व्यवस्था बनाई की जिससे सही ढंग से काम चल सके.
वो व्यवस्था इस प्रकार थी .
जब भी किसी परिवार मैं कोई बच्चा पैदा होता  तो उसके सामने सभी जरूरी काम के वर्गों के सामान रख दिए जाते और बच्चा जिस तरफ रुख कर देता वो काम उसका हो जाता और वो अपनी जिन्दगी उसी काम में समर्पित कर देता . ये एक निष्पक्ष प्रणाली थी ,तब परिवर्तन कैसे आये? कैसे ये प्रणाली इतनी दूषित कैसे हो गयी ? इसका उत्तर भी है मेरे पास .

जिन व्यक्तियों को पढने लिखने काम मिला उन्होंने समाज के साथ साजिश  की उन्हें ये लगा की कैसे उनका पुत्र एक शूद्र  का काम कैसे कर सकता है , समाज में बुद्धिमान होने के कारन उन्होंने व्यवस्था अपने हिसाब से मोड़ ली . तभी से इन जातियों का जन्म हुआ , तभी से पंडित का बेटा पंडित , वैश्य का बेटा वैश्य , शुद्र का बेटा शूद्र होने लग गया . और दुःख इस बात का है की आज इस पढ़े लिखे समाज में इन घटिया चीजों को सही ठहराया जाता है .

अब आज मैं क्यों इस विषय को  उठा रहा हूँ , इससे होने वाले परिणामों के कारन .
परिणाम संख्या एक - जातीय बैर , उची जातियों , और नीची जातियों  के बीच में लड़ाई .
उची जातियों के बीच आपस में लड़ाई  (  जैसे पंडितों और ठाकुरों , ठाकुरों -ठाकुरों  के बीच में लड़ाई )
और  बहुत से कारन है जिन्हें बताने की जरूरत भी नहीं है . लेकिन इनसे भी जयादा परेशान करने वाली चीजें  वो है जिसके कारन लोग इसका राजनीतक फायदा उठाकर समाज को तोड़ने की कोशिस कर रहे है , मैंने कहीं पढ़ा है , हर साल कुछ नीची जाति के लोग बौध धरम स्वीकार कर रहे हैं , कुछ  लोग ईसाई धरम स्वीकार कर रहे हैं , मुझे इन धरम परिवर्तनों से कोई दिकत नहीं दिक्कत है तो सिर्फ वो कडुवाहट जो इसका कारन बन रहे हैं . और जो ये धरम परिवर्तन करवाते है वो इस जहर का फ़ायदा उठाते  हैं . अब आप लोग समझदार हैं समझिये .

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1 comment:

Anonymous said...

बताइए, भारत में ऐसा कौन सा धर्म है जिसके मतावलंबी जाति को नहीं मानते!? ईसाई और मुस्लिम भी, जिनके धर्म में जातिप्रथा नहीं है, वे भी तमाम जातियों में बनते हैं. भारत ही एकमात्र देश है जहाँ धर्म बदल सकते हैं जाती नहीं. कोई लाख IAS-IPS बन जाये, जब जाति से फायदा उठाना हो तो सभी दलित बन जातेहैं.