Friday, March 13, 2009

दर्द


आज मेरा मन रो रहा है , चिल्ला रहा है ,माँओं, बहनों के लिए, पत्नियों के लिए, बापों के लिए जिन्होंने अपना बेटा ,भाई , पति खोया , जिन माँओं बहनों , पत्नियों ,बेटियों का बलात्कार हुआ उनके लिए , क्योंकि हम सौभाग्य से वहां नही थे हम नही समझ सकते की उन पर क्या गुजर रही होगी जब उनके परिवार का कोई मारा जा रहा होगा , उन्हें कैसा लग रहा होगा जब उनके बेटे , बापों को उनके सामने जलाया जा रहा होगा , उनके गले काटे जा रहे होंगे , उनकी बहनों , बेटियों के साथ बलात्कार हो रहा होगा , क्योंकि ये हमारे साथ नही हुआ, हम कैसे इसे समझ सकते हैं ये तो हमारे लिए बस ये एक न्यूज़ ही है , हम भूल जाते हैं , पर ये कभी सोचा की उनके परिवार वाले इसे कैसे भूल सकते हैं वो नही भूल सकते हैं , क्योकि जब ये पल जब उनके साथ बीत रहा था तो वो हजारों मौत मर रहे थे , वो एक -एक पल उन्हें ये एहसास करा रहा था की जिन्दा होकर भी मरना क्या होता है , मैं जब भी किसी नेता कों, लीडर को , शासक को जिन्दगी और मौत की बातें करते देखता हूँ तो ये लगता है की उनके लिए ये बात करना कितनी ना इंसाफी है क्योंकि उनकी वजह से लाखों बापों ,बेटों का कत्ल हुआ , बेटियाँ , बहनों के साथ बलत्कार हुआ , हमारा भाग्य कितना अच्छा है की हमें केवल ख़बरों का ही सामना करना पड़ता है ,कि हम कश्मीर , गाजा पट्टी , पाकिस्तान में पैदा नही हुए जहाँ जिन्दा रहना ही जिन्दगी का उद्देश्य है , फिर भी हम बड़े आराम से अपने किसी नेता कि बात मैं हाँ से हाँ मिलते हुए कहते हैं कि हम तो शांतिप्रिय हैं , पर अगर कोई दूसरे धरम या संप्रदाय का हमारी शान्ति भंग करेगा तो हम जवाब देंगे ," जवाब में क्या दंगे करेंगे !" और अपनी सरकार बनायेंगे और अपने कों विकास पुरूष कहेंगे , आप नही आपके नेता । अरे बुधिमानो जिन्दगी का जाति और धरम से कोई नाता नही होता । कम से कम उनकी माँओं और बहनों के लिए नही , अपनी माँ और बहनों के लिए ही जागो । क्योंकि लखनऊ ,डेल्ही कों "गोधरा ", और गुजरात बनते देर नही लगेगी .

Thursday, March 12, 2009

क्रांति



हम ही समाज बनाते हैं और समाज देशों का भविष्य तय करते हैं , हम बहुत आसानी से अपनी गलती दूसरो को मसलन "सरकार " की गलती है कहकर टाल देते हैं , चलिए मैं आपको आत्मदर्शन कराता हूँ , शुरुआत मैं धरम से करता हूँ चलिए बताइए धरम चीज क्या है , हिंदू ,मुस्लिम इसाई या सिख क्या इसे धरम कहते हैं ? या आज कल टेलीविजन पर विभिन्न चैनलों पर जो प्रचारक धरम की परिभाषा बतातें है क्या वो धरम है , अपनी विभिन्न धर्म किताबों के जरिये वो ये कहतें की बस वो किताब ही इश्वर के वचन है , क्या इन सब ने हमें चूतिया समझ रखा है , धरम जीवन जीने का एक तरीका है , और ये धरम इस दुनिया में है ये बस उस तरीके को अपनी तरीके से बताते हैं .
अब भारत देश में तो एक बिमारी और भी है वो है जाति की बीमारी , अब आप मुझे बताएं की ये जाति क्या होती है ? वर्ण व्यवस्था से निकली ये जाति अब जा ही नही रही है जबकि वर्ण व्यवस्था कबकी चली गई . हमारी जड़ों में ये चीजें इतनी बुरी तरह से बसी हैं की हम इसे प्रूफ़ करने के लिए तरह - तरह के तर्क देते हैं जैसे की " मैं भी इन चीजों को नही मानता पर अपने माँ बाप को दुखी नही कर सकता" , अगर दहेज़ प्रथा पर बोलना हो तो सब इसकी किंतनी ही बुराइयाँ निकाल देंगे , पर जब बात अपने पर आती है तो हर आदमी अपने हिसाब से अपना दाम लगता है और तर्क देता है की अरे कौन सा प्रेम विवाह है कुछ पैसा ले लिया तो क्या ग़लत किया , कितनी गन्दी मानसिकता है , अब वो वक्त आ गया है की समाज को नंगा कर करके चौराहे पर खड़ा कर दो और उसे शर्म लगने दो अपने ऊपर , अगर आप भी ऐसे हैं तो तैयार हो जाइये नंगा होने के लिए या मेरे साथ खड़े होइए , क्योंकि मैं और मेरे जैसे हजारों नौजवान अब तैयार हैं ।

गुलामी

अब मुझे गुलाम नही रहना , अरे तुम गुलाम कहाँ हो ? हाँ मैं गुलाम हूँ , अगर मैं अपने ही धरती पर अपने ही लोगों के खिलाफ नही बोल सकता तो मैं गुलाम हूँ , मैं अगर अपनी जाति या धरम से बाहर जाकर विवाह नही कर सकता तो मैं गुलाम हूँ , मैं उन रुढिवादी रीति रिवाजों का गुलाम हूँ जो हमे इंसान होने पर शर्म महसूस कराती हैं । १९४७ में स्वतंत्र तो हो गए, " पर अंग्रेजों से" , अपने आप और अंपने लोगों लोगों के गुलाम तो हम अभी भी हैं , हाँ आज हमे हमारे वो सारे अधिकार प्राप्त हैं जो हमे स्वतंत्रता का अनुभव तो कराती हैं पर यह एक झूठा अनुभव है , ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ कुछ लोग जो सालों से यहाँ राज कर रहें हैं और अपने आप को जनता का प्रतिनिधि बतातें हैं , अपने मन से पूछिए क्या वो हमारे हितों की रक्षा कर रहे हैं या अपने । हाँ मुझे स्वंतंत्र होना है और मैं अब चुप नही बैठूंगा अब मैं बोलूँगा और आपके ख़िलाफ़ भी बोलूँगा आपको बुरा लगे तो लगे क्योंकि आप भी तो मेरी गुलामी में भागीदार हैं .