Thursday, March 12, 2009

गुलामी

अब मुझे गुलाम नही रहना , अरे तुम गुलाम कहाँ हो ? हाँ मैं गुलाम हूँ , अगर मैं अपने ही धरती पर अपने ही लोगों के खिलाफ नही बोल सकता तो मैं गुलाम हूँ , मैं अगर अपनी जाति या धरम से बाहर जाकर विवाह नही कर सकता तो मैं गुलाम हूँ , मैं उन रुढिवादी रीति रिवाजों का गुलाम हूँ जो हमे इंसान होने पर शर्म महसूस कराती हैं । १९४७ में स्वतंत्र तो हो गए, " पर अंग्रेजों से" , अपने आप और अंपने लोगों लोगों के गुलाम तो हम अभी भी हैं , हाँ आज हमे हमारे वो सारे अधिकार प्राप्त हैं जो हमे स्वतंत्रता का अनुभव तो कराती हैं पर यह एक झूठा अनुभव है , ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ कुछ लोग जो सालों से यहाँ राज कर रहें हैं और अपने आप को जनता का प्रतिनिधि बतातें हैं , अपने मन से पूछिए क्या वो हमारे हितों की रक्षा कर रहे हैं या अपने । हाँ मुझे स्वंतंत्र होना है और मैं अब चुप नही बैठूंगा अब मैं बोलूँगा और आपके ख़िलाफ़ भी बोलूँगा आपको बुरा लगे तो लगे क्योंकि आप भी तो मेरी गुलामी में भागीदार हैं .

1 comment:

Anonymous said...

thrr is really a need to chng and yss not to chng d world bt to chng within . untill v ourself chng how cld v chng d wrld.
the abv bolg truely reflects d current situation around us . so me also in favour for a better chng .....