Saturday, November 21, 2009

आज फिर याद आया वो दिन


आज जब मैं टेलीविज़न  देख रहा था , चैनल बदलते बलदते अचानक एक चैनल पे हाथ रुक  गए , उस पर पिछले  साल हुए मुबई आतंकवादी घटना पर एक छोटी फिल्म दिखा रहे थे , किस तरह उस मौत के तूफ़ान में भी लोग ऐसे साहस से काम कर रहे थे की मौत भी ठहर कर ये  देखे की ये कौन लोग हैं जो मुझसे भी नहीं डरते , की किस तरह वे लोग फिर भी डटे रहे जब उनका कोई सबसे प्यारा उस मौत के तूफ़ान की भेट चढ़ गया ,  दिमाग में हमेशा  यही की मेरे मासूम बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा था   . फिर भी वो औरों के बच्चो की जान बचाने में लगे थे , मेरे दिमाग में हमेशा  यही रहता है की किस तरह मौत सब कुछ बदल देती है , किस तरह एक आदमी के लिए एक पल सब कुछ बदल के रख देता है , किस  तरह वो जीने का मकसद ढूँढने  लगता है ,  वो दर्द शायद मैं नहीं समझ सकता इसलिए समझ नहीं आ रहा की क्या लिखूं  , पर  में  ये  जरूर  कहूँगा हमे ये नहीं भूलना  चाहिए की एक माँ हमे नौं महीने पेट में रखकर जनम देती है , जब भी किसी भी कारन से किसी भी तरह से किसी की हत्या को सही ठहराए तो उनकी   माओं के बारे जरूर सोचे , की अगर किसी माँ को ये मालूम हो की उसका बेटा , या बेटी किसी सनक के शिकार हो जायेंगे तो शायद वो उन्हें जनम देने से इंकार कर देती  , अगर देखा जाये तो दुनिया में जितने युध  हुए , दंगे हुए , नर सिंघार  हुए वो कुछ आदमियों की सनक की वजह से थे कोई भी सही कारन नहीं था , धरम  , जाती , नस्ल  तो बस बहाने थे , मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ की अब बस बहुत हुआ , अब और बच्चे  इस सनक का शिकार  नहीं होंगे , हमे ये कसम  खानी  होगी  की अब आवाज उठाएंगे   उन सनकियों के खिलाफ , जो धरम जाती , छेत्र , भाषा , नस्ल को नफरत का जरिया बनाते हैं . ध्यान  रहे ये सब जरिया हैं नफरत फ़ैलाने के असली जड़ खुद इसान ही है . हम अपनी नफरत को बहुत जल्दी कोई न कोई नाम दे देते हैं , अब हमे इस पर विचार करने की जरूरत है.a tribute to forgeeten souls .

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