Thursday, November 19, 2009

चलो एक नया धरम बनाते हैं

काफी दिन से कुछ लिखा नहीं था खुजली हो रही थी सोचा कुछ लिख दूं , चलिए क्योंकि ये ब्लॉग समाज , उसकी धर्मिक एवं जातीय मान्यताओं के बारे में मेरी सोच के लिए है , तो लीजिये  बंदा हाजिर है कुछ अनसुलझे पहलू लेकर .मैं मनाता हूँ  की ये पूरी दुनिया सांप्रदायिक है और जो इश्वर में विश्वास नहीं करते वो कोई और दायिक हैं . कुल मिला कर सब कहीं न कहीं फसे है बिडू , वैसे तो कहने को अभी का समय सबसे विकसित माना जाता है , पर मुझे लगता है की पहले के लोग काफी बुद्धिमान थे अब देखिये न बड़ा गेम खेला उन्होंने की अभी तक हम सब उसी में फसे  हैं , "वो कहते हैं न पोथी पढ़ पढ़ जग मुया पंडित भया न कोय" वही हालत हम सब की है , किताबें तो हम सबने काफी पढ़ी हैं , अब तो नए नए साधन आ गए हैं , टेलीविज़न , इन्टरनेट , अखबार सभी से हमे नयी नयी जानकारी मिल रही है , हर आदमी अपने विचारों को प्रस्तुत कर रहा है , एक कंप्यूटर की तरह अपने अन्दर फीड डाटा निकाल रहा है , दोनों मैं कोई अंतर नहीं है  उनकी अपनी कोई सोच नहीं है . या ख़तम  हो रही है  सोचने का काम तो उन  पुराने ग्रंथों ने कर दिया न हजारों साल पहले , अब क्यों सोचना वैसे भी आदमी कितना आलसी होता है , है न ! अरे भाई जिन्दगी इतनी भी जटिल नहीं है की किताबें ये ग्रन्थ , ये कुरान ये बाइबिल पढ़ कर ही जिन्दगी चलेगी  , जिन्होंने ये किताबें लिखी वो बुद्धिमान थे उन्होंने  रास्ता दिखाया , पर उन्होंने इससे तो मना नहीं किया की अपना रास्ता न चुनो , इश्वर ये किताबें ये ग्रन्थ नहीं है , न ही इन किताबों में वो छमता है जो  इश्वर को इतने छोटे दायरे मैं बाँध सकें .
अरे  मेरे भाईओं अपनी अकल लगाओ , इश्वर तक पहुचना है तो एक दुसरे से प्रेम करना सीखो , लोगों की मदद करना सीखो , अपने आप को दायरे मैं मत बांधो , आदमी हो आदमी बने रहो जैसा इश्वर ने तुम्हे  बना कर भेजा है . मैं सबसे आवाहन करता हूँ की आओ हम मिलकर एक नया धरम बनाते है , जो किसी नाम  , भाषा ,रंग - रूप या छेत्र की मोहताज न हो . "वो कहते है न दिखावों पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ "