Sunday, January 17, 2010

खेल और भारत



काफी दिनों से कुछ लिख नहीं पाया था , आज वक़्त मिला तो समझ नहीं आ रहा था की क्या लिखूं , फिर एक  महानुभाव के ब्लॉग को पढ़ा तो समझ में आ गया की क्या लिखना है , जब मैं उनके ब्लॉग को पढ़ रहा था तो मुझे लगा की आवाज इनकी नहीं पूरे हिंदुस्तान की है , और फिर ये भी लगा की हमारे देश की आवाज इतनी गलत कैसे हो सकती है , दरसल मैं बात कर रहा हूँ अपने देश में खेल और खेलों की दुर्दशा के बारे में , वो हमारे यहाँ प्रसिद्ध कहावत है ना " पड़ोगे -लिखोगे बनोगे नवाब , खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब " . दरसल बचपन से ही मुझे इस कहावत से चिढ  थी , मुझे समझ नहीं आया हमारा देश ऐसा क्यों है . फिर यहाँ लोग कहते हैं की हम गरीब हैं ! हम गरीब क्यों हैं इसके बारे में कोई सोचा नहीं चाहता ? मैं  ये कई लोगों से  सुन  चुका हूँ की अगले साल होने वाले कॉमन वेल्थ गेम्स इस गरीब देश के लिए फ़िज़ूल खर्ची है , हम अभी गरीब हैं हमे गरीबी हटाने पर ध्यान देना चाहिए , पर गरीबी हटाएं तो कैसे ? क्या जब हम इतनी बड़ी प्रतियोगिता करते हैं तो लोगों इससे रोजगार नहीं मिलता ? क्या हमारे देश में पर्यटन की बढोतरी नहीं होगी ?और क्या हमारे देश में जो खिलाडी अपनी जिन्दगी पर खेल कर इस देश का नाम रोशन कर रहे है वो इस देश के नहीं हैं , शायद हम ऐसा नहीं सोचते तभी १ अरब की आबादी वाले देश में ओलंपिक्स में एक स्वर्ण पदक आता  है , वहीँ हमसे भी कई गुना गरीब देश केन्या ८ स्वर्ण पदक जीतता है ! अब क्या करें हम तो गरीबी हटा रहे हैं न कुछ न कर- कर , अरे भाइयों गरीबी खाली रोने से नहीं मिटेगी  काम करने से मिटेगी  , और अब खेल खेल नहीं हैं , इस बात को समझो, आगे बढ़ो , मेहनत करो .

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