Friday, January 29, 2010

हाय ये गरीबी


हम सब २१ वी  सदी के भारत में हैं , ये भारत  एक तरफ तो हमे एक गर्व महसूस करता है , दूसरी तरफ ये सवाल भी खड़ा करता है , क्या हम उस मुकाम तक पहुच पाएं हैं की हम ग्रवान्वित हो सकें , मैं उन लोगों की बात कर रहा हूँ , जिनके बारें में बात तो सभी कर रहे हैं ,आवाज़ भी उठा रहे हैं , पर ये कैसी  आवाज़ है की उन कानो तक नहीं पहुच पा रही जिनकी हम बात कर रहे , ये है वो गरीब आदमी जिसे ना भारत उदय का पता है , ना अस्त का ,उसे ना उनका पता है ,जो उनकी बात कर के वोट मांगते हैं ,या फिर ना उनका पता है जो उनकी वजह से लोगों को मारते हैं , ना उनका पता है जो टी.वी पर बैठ कर ,अख़बारों में , ब्लॉग पर उनके बारे में बात करते हैं ,अरे उसे तो अपने जीने मरने का पता नहीं है , ये सवाल सब करते हैं की "हाय ये गरीबी " ,पर ये गरीबी का सवाल भी शायद उन्ही तक सीमित है क्योंकि जवाब अभी तक मुझे नहीं मिला . मैं आप सभी से घटना  को बाटना  चाहूँगा .मैं  एक दिन नगर बस से अपने कॉलेज जा रहा था ,तभी कुछ मजदूरों ने उस बस को रोका और पूछा भैया फैजाबाद जाओगे , मैंने उन्हें ध्यान से देखा उनकी आँखें  बड़ी आश्चर्य में थी ,उन्हें समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें , उन्हें तो शायद ये भी नहीं पता था की ये फैजाबाद है कहाँ ,ये ऐसे गरीब थे जिन पर अभी ना कोई सरकार पहुची है ना कोई ऐन जी ओं पंहुचा ना कोई टी वी चैनल और ना कोई और  उनकी जिन्दगी का मकसद केवल पेट भरना है , अब अपने आप को उस जगह रख कर देख लीजिये , मतलब समझ आ जायेगा गरीबी का , मैं बहुत अच्छा लेखक नहीं हूँ शायद सही से लिख नहीं पा रहा , वैसे भी मेरा मकसद दो आंसू गिरवाकर वाह- वाही  लूटना नहीं है मेरी दरख्वास्त तो बस इतनी सी है की केवल सवाल ना पूछिए , उसके जवाब भी खोजने की  कोशिश  करिए .

8 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा लिखा है. निश्चित ही जबाब की दरकार है, प्रश्न की बजाये.

निर्मला कपिला said...

सही बात है।

Abhishek Ojha said...

भाई ये यथार्थ तो हर चौराहे पर दिख जाता है. इस पोस्ट में भावनाएं भला किसे नहीं दिखेंगी?

लखनऊ तो जल्दी ही आना है. शायद मुलाकात हो जाती लेकिन इतने कम समय और व्यस्त कार्यक्रम में संभव नहीं लग रहा. फिर कभी...
आपकी हाल की टिपण्णी पर मेरी प्रतिटिपण्णी:

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अरे भाई क्षमा मांगने की जरुरत नहीं, आप लखनऊ के रहने वाले हैं और आप जरूर बेहतर जानते हैं लखनऊ के बारे में. और आपने अपनी राय दी... इसके लिए धन्यवाद. "लखनऊ में मेरा कभी रहना नहीं हुआ. जब भी गया 2-4 घंटे के लिए ही. तो लखनऊ के बारे में कही गयी मेरी हर बात 2-4 घंटो के अनुभव पर ही आधारित होगी तो उसे उसी रूप में लिया भी जाना चाहिए." आपने जो बात कही है उसका अंदेशा था इसीलिए मैंने ये लिखा था. पर राय इस लाइन से नहीं बल्कि बाकी पोस्ट में जो था उससे बन गयी, ये मैं मानता हूँ. लखनऊ में तो नहीं रहा पर बाकी उत्तर प्रदेश में तो रहना हुआ ही है. और जब भी 'अपने घर' जाता हूँ... बड़ा दुःख होता है. शायद इसीलिए ये पोस्ट बन गयी.

jayanti jain said...

welcome to ......

shama said...

Ye sawal shayad har suljhe hue,sanmvedansheel deshwasee ke manme aate honge...hamne apne se jo ban paye wahi karna chahiye,aur kya kah sakti hun?

Anurag Sharma said...

GOOD ONE...

kshama said...

Chitr aur aalekh,dono ne aankhen nam kar deen..

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें