my blog is mutiny against all conventional old things , which is a baggage to a common man .hence it is my voice against all untruthful things happening in the society .
Thursday, December 3, 2009
सेकुलर सब्द का अर्थ ये मीडिया वाले और ये राजनीतिज्ञ क्या जाने ?
मैं सेकुलर हूँ , मैं ये जानता हूँ , मुझे इसकी परिभाषा भी मालूम है , पर मुझे शक होता है की क्या इन मीडिया , और इन राजनीतिक पार्टियों को ये मालूम है , मुझे तो ऐसा नहीं लगता , और उनका ये सेकुलर बहुत ही खतरनाक है , कई बार महसूस होता है की ये मीडिया वाले ये नेता लोग किसी एक धरम के लोगों के निंदा करके और दूसरे धर्मों के गलत कामो को छिपा कर सेकुलर बनाना कहते हैं , जैसे की मालेगांव धामके के बाद मीडिया और कई राजनितिक दलों ने इसे भारत में हिन्दू आतंकवाद की शुरुवात बताई और कई बार हिन्दू आतंकवाद को नया खतरा बताने की कोशिस की , जैसे की मुस्लिम धरम को आतंकवाद से जोड़ा जाता है , ये बात अलग है की जयादातर मामलो में मुस्लिम ही ऐसे घटनाओ के पीछे होते हैं , तब ये कहा जाता है की मस्लिम धरम से इसका कोई नाता नहीं , और ये बात सही है , ये बात स्वयं ये मीडिया वाले , राजनितिक दल बार बार दोहराते रहते है , क्योंकि सेकुलर का तमगा जो लगाना है , पर ये बात उस समय कहा चली जाति है जब ये हिन्दू धरम को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिस करते हैं . दरसल सेकुलर शब्द बहुत ही वृस्तित शब्द है , ये केवल उसके शाब्दिक अर्थ तक ही सीमित नहीं है , और ये बात इन गधे मडिया वाले और राजनीतिकों को समझ नहीं आएगी , सेकुलर का केवल ये मतलब नहीं है की सभी धरम के लोग एक सामान है और सभी अपने अपने धरम के अनुसार काम कर सकते हैं , ये अर्थ तब तक पूरा नहीं है जब तक लोग ये नहीं समझ जाते जिस तरह से वास्तविक समय मैं धरम अपनी कार्यप्रणाली चला रहे हैं उससे ज्यादातर आबादी सांप्रदायिक ही रहेगी , जब तक हम इंसान होते हुए भी धरम का नाम देकर अपने को अलग बताते रहेंगे तब तक सेकुलर प्राणी आपको ढूडने पर ही मिलेगा , इन मीडिया और इन राजनीतिज्ञों की क्या औकात की ये सेकुलर बन सके .
Wednesday, December 2, 2009
हिन्दू धरम और जाति नामक जहर
हिन्दू धरम और जातियों का एक दूसरे से चोली और का दामन नाता है ,ये एक दूसरे से इस ढंग से जुड़े हुए हैं की अगर कुछ भी अलग होने के कोशिश करेगा तो किसी न किसी का नंगा पन तो सामने आएगा ही , चलिए मैं आपको हिन्दू धरम में जातियों की उत्पत्ति और बाद में इसका परिवर्तित स्वरुप और इससे होने वाले परिणामों की चर्चा करूंगा . अगर कोई भी चीज मेरी बनाई लगे तो आप सब मुझे कह सकते हैं अगर नहीं तो कृपा करके मेरे पक्ष में ही लिखे दरसल मैं बहुत कट्टर हूँ .
जातियों का निर्माण कुछ ऐसे हुआ , कुछ हजारों साल पहले जब देश , राज्य जिले जैसे परिकल्पना नहीं थी तब गाँव अकेले मिलजुल कर अपनी जरूरतें पूरी करते थे , तो उन्होंने एक व्यवस्था बनाई की जिससे सही ढंग से काम चल सके.
वो व्यवस्था इस प्रकार थी .
जब भी किसी परिवार मैं कोई बच्चा पैदा होता तो उसके सामने सभी जरूरी काम के वर्गों के सामान रख दिए जाते और बच्चा जिस तरफ रुख कर देता वो काम उसका हो जाता और वो अपनी जिन्दगी उसी काम में समर्पित कर देता . ये एक निष्पक्ष प्रणाली थी ,तब परिवर्तन कैसे आये? कैसे ये प्रणाली इतनी दूषित कैसे हो गयी ? इसका उत्तर भी है मेरे पास .
जिन व्यक्तियों को पढने लिखने काम मिला उन्होंने समाज के साथ साजिश की उन्हें ये लगा की कैसे उनका पुत्र एक शूद्र का काम कैसे कर सकता है , समाज में बुद्धिमान होने के कारन उन्होंने व्यवस्था अपने हिसाब से मोड़ ली . तभी से इन जातियों का जन्म हुआ , तभी से पंडित का बेटा पंडित , वैश्य का बेटा वैश्य , शुद्र का बेटा शूद्र होने लग गया . और दुःख इस बात का है की आज इस पढ़े लिखे समाज में इन घटिया चीजों को सही ठहराया जाता है .
अब आज मैं क्यों इस विषय को उठा रहा हूँ , इससे होने वाले परिणामों के कारन .
परिणाम संख्या एक - जातीय बैर , उची जातियों , और नीची जातियों के बीच में लड़ाई .
उची जातियों के बीच आपस में लड़ाई ( जैसे पंडितों और ठाकुरों , ठाकुरों -ठाकुरों के बीच में लड़ाई )
और बहुत से कारन है जिन्हें बताने की जरूरत भी नहीं है . लेकिन इनसे भी जयादा परेशान करने वाली चीजें वो है जिसके कारन लोग इसका राजनीतक फायदा उठाकर समाज को तोड़ने की कोशिस कर रहे है , मैंने कहीं पढ़ा है , हर साल कुछ नीची जाति के लोग बौध धरम स्वीकार कर रहे हैं , कुछ लोग ईसाई धरम स्वीकार कर रहे हैं , मुझे इन धरम परिवर्तनों से कोई दिकत नहीं दिक्कत है तो सिर्फ वो कडुवाहट जो इसका कारन बन रहे हैं . और जो ये धरम परिवर्तन करवाते है वो इस जहर का फ़ायदा उठाते हैं . अब आप लोग समझदार हैं समझिये .
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जातियों का निर्माण कुछ ऐसे हुआ , कुछ हजारों साल पहले जब देश , राज्य जिले जैसे परिकल्पना नहीं थी तब गाँव अकेले मिलजुल कर अपनी जरूरतें पूरी करते थे , तो उन्होंने एक व्यवस्था बनाई की जिससे सही ढंग से काम चल सके.
वो व्यवस्था इस प्रकार थी .
जब भी किसी परिवार मैं कोई बच्चा पैदा होता तो उसके सामने सभी जरूरी काम के वर्गों के सामान रख दिए जाते और बच्चा जिस तरफ रुख कर देता वो काम उसका हो जाता और वो अपनी जिन्दगी उसी काम में समर्पित कर देता . ये एक निष्पक्ष प्रणाली थी ,तब परिवर्तन कैसे आये? कैसे ये प्रणाली इतनी दूषित कैसे हो गयी ? इसका उत्तर भी है मेरे पास .
जिन व्यक्तियों को पढने लिखने काम मिला उन्होंने समाज के साथ साजिश की उन्हें ये लगा की कैसे उनका पुत्र एक शूद्र का काम कैसे कर सकता है , समाज में बुद्धिमान होने के कारन उन्होंने व्यवस्था अपने हिसाब से मोड़ ली . तभी से इन जातियों का जन्म हुआ , तभी से पंडित का बेटा पंडित , वैश्य का बेटा वैश्य , शुद्र का बेटा शूद्र होने लग गया . और दुःख इस बात का है की आज इस पढ़े लिखे समाज में इन घटिया चीजों को सही ठहराया जाता है .
अब आज मैं क्यों इस विषय को उठा रहा हूँ , इससे होने वाले परिणामों के कारन .
परिणाम संख्या एक - जातीय बैर , उची जातियों , और नीची जातियों के बीच में लड़ाई .
उची जातियों के बीच आपस में लड़ाई ( जैसे पंडितों और ठाकुरों , ठाकुरों -ठाकुरों के बीच में लड़ाई )
और बहुत से कारन है जिन्हें बताने की जरूरत भी नहीं है . लेकिन इनसे भी जयादा परेशान करने वाली चीजें वो है जिसके कारन लोग इसका राजनीतक फायदा उठाकर समाज को तोड़ने की कोशिस कर रहे है , मैंने कहीं पढ़ा है , हर साल कुछ नीची जाति के लोग बौध धरम स्वीकार कर रहे हैं , कुछ लोग ईसाई धरम स्वीकार कर रहे हैं , मुझे इन धरम परिवर्तनों से कोई दिकत नहीं दिक्कत है तो सिर्फ वो कडुवाहट जो इसका कारन बन रहे हैं . और जो ये धरम परिवर्तन करवाते है वो इस जहर का फ़ायदा उठाते हैं . अब आप लोग समझदार हैं समझिये .
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धरम और जाति के ताबूत पर कील हम जैसे युवा गाड़ेंगे .
आज फिर मन किया थोडा जहर उगलें अरे डरिये नहीं, अरे ये जहर उनके लिए है जो अपने आप को कुछ ख़ास समझते हैं , एक भाई जान है मेरे घर के पास ही रहतें हैं पढ़े लिखे हुए हैं , इंजिनियर हैं अच्छी जगह काम करतें हैं कुछ हाँ में हाँ मिलाने वाले लोग भी हैं उनके इधर उधर , थोड़ी बड़ाई कर दो तो कहतें हैं अरे हम तो बस एक साधारण इंसान हैं , पर कई सारे काम करते हिचकते हैं कहतें हैं ये काम नहीं कर सकते , अरे उनकी इंजिनियर बॉडी पर सूट नहीं करेगा न , और धरम , जाति , और कई मुद्दे पर बेबाकी से कहतें है में ये सब कुछ नहीं मानता , पर क्या करून माँ , पिता जी को दुखी नहीं कर सकता , ऐसे लोगों से भरा पड़ा है हमारा समाज , कहने को सब समझते हैं पर कुछ नहीं समझते , अब दुसरे तरह के लोग हैं वो भी मेरे दोस्त हैं , उनसे बात करो की किस तरह धर्मों का स्वरुप कट्टरता को बढ़ावा देता और उन्हें उनके धर्म की गलतियां बतानें लगो तो इसे एक दम नकारते हुए वो लोग तुरंत मेरे धरम की कमियां गिनाना चालू कर देते हैं , जैसे की कभी किसी व्यक्ति से अपनी परेशानी की बात करो तो किस तरह वो अपनी परेशानिया बतानें लगता है और दुसरे की परेशानियों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है , ये आदमी का स्वभाव है चाहे जितनी कोशिश कर लो वो अपना कमीना पन छोड़ने से साफ़ मना कर देता है मुझे लगता है लोग सच सुनना पसंद नहीं करते , हर जगह सभी गधे पन की बड़ी बड़ी मिशालें खड़ी करने में लगें हैं , हर कोई अपने गधेपन को दूसरे के गधेपन से ऊचा दिखाने में लगा है , अरे भाइयों पढ़े लिखे हो थोडा इंसानों जैसा बर्ताव करो , ये क्या हिन्दू मुस्लिम , ईसाई , पंडित, ठाकुर लगाए बैठे हो . चलो कोई बात नहीं हम जैसे युवा इस धरम ,जाति को ख़तम करके इसकी ताबूत में कील गाड़ेंगे . अब वो दिन दूर नहीं . साथ में आ जाओ वर्ना भविष्य तुम जैसे लोगों का स्वागत नहीं करता .
Monday, November 23, 2009
लोकतंत्र बनता गुंडा तंत्र
गांधी जी , सुभाष चन्द्र बोस , भगत सिंह जी जब हमारी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे , तब उन्होंने सोचा भी नहीं था , की आज से पच्चास - साठ साल बाद उनके देश की ये हालत हो जाएगी की उनके बेटे -बेटी उनके नाम का इस तरह मजाक उड़ायेंगे . आज वो होते तो वो खूब फूट फूट के रोते . जिन्होंने अपनी हर एक स्वास , अपने शरीर के खून की एक -एक बूँद इस देश को बनाने में लगाई , आज उसकी बेटे - बेटी उसे तोड़ने में लगे हैं , बाला साहब ठाकरे को कौन समझाए की तुम जैसा सोचते हो , वैसे जिन्नाह भी सोचता था , अब तुम्हे सचिन महारास्त्र का भक्त नहीं लगता तो कोई बात नहीं क्योंकि वो देश भक्त है और उसने अपने देश को एक दो बार नहीं सैकड़ो बार गर्वित किया है , और तुम शायद भूल गए हो की मुंबई इस देश का ही एक हिस्सा है . वो क्रिकेट खेलता है , और उस जरिये से उसने देश की जो सेवा करी है उसका अंस मात्र भी तुम राजनीती में रहते हुए इस देश के लिए कर पाए हो तो बताओ , वर्ना अपना ये सडा मुह बंद रखो , अरे इतनी ही चिंता है महारास्त्र वासियों की तो विदर्भा भी तुम्हारे राज्य में आता है , उनके किसानो के लिए करो , अरे छोड़ो तुम तो अपने मराठी भाइयों के लिए भी कुछ नहीं कर पाए , मुझे शर्म आती है की गाँधी के देश में तुम जैसे कपूत हुए . अब मुझे लगता है लोकतंत्र का नाम तुम जैसे लोगों की वजह से गुंडा तंत्र रख देना चाहिए . आगे और भी ,............................................................................................................................................................................................
Saturday, November 21, 2009
आज फिर याद आया वो दिन
आज जब मैं टेलीविज़न देख रहा था , चैनल बदलते बलदते अचानक एक चैनल पे हाथ रुक गए , उस पर पिछले साल हुए मुबई आतंकवादी घटना पर एक छोटी फिल्म दिखा रहे थे , किस तरह उस मौत के तूफ़ान में भी लोग ऐसे साहस से काम कर रहे थे की मौत भी ठहर कर ये देखे की ये कौन लोग हैं जो मुझसे भी नहीं डरते , की किस तरह वे लोग फिर भी डटे रहे जब उनका कोई सबसे प्यारा उस मौत के तूफ़ान की भेट चढ़ गया , दिमाग में हमेशा यही की मेरे मासूम बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा था . फिर भी वो औरों के बच्चो की जान बचाने में लगे थे , मेरे दिमाग में हमेशा यही रहता है की किस तरह मौत सब कुछ बदल देती है , किस तरह एक आदमी के लिए एक पल सब कुछ बदल के रख देता है , किस तरह वो जीने का मकसद ढूँढने लगता है , वो दर्द शायद मैं नहीं समझ सकता इसलिए समझ नहीं आ रहा की क्या लिखूं , पर में ये जरूर कहूँगा हमे ये नहीं भूलना चाहिए की एक माँ हमे नौं महीने पेट में रखकर जनम देती है , जब भी किसी भी कारन से किसी भी तरह से किसी की हत्या को सही ठहराए तो उनकी माओं के बारे जरूर सोचे , की अगर किसी माँ को ये मालूम हो की उसका बेटा , या बेटी किसी सनक के शिकार हो जायेंगे तो शायद वो उन्हें जनम देने से इंकार कर देती , अगर देखा जाये तो दुनिया में जितने युध हुए , दंगे हुए , नर सिंघार हुए वो कुछ आदमियों की सनक की वजह से थे कोई भी सही कारन नहीं था , धरम , जाती , नस्ल तो बस बहाने थे , मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ की अब बस बहुत हुआ , अब और बच्चे इस सनक का शिकार नहीं होंगे , हमे ये कसम खानी होगी की अब आवाज उठाएंगे उन सनकियों के खिलाफ , जो धरम जाती , छेत्र , भाषा , नस्ल को नफरत का जरिया बनाते हैं . ध्यान रहे ये सब जरिया हैं नफरत फ़ैलाने के असली जड़ खुद इसान ही है . हम अपनी नफरत को बहुत जल्दी कोई न कोई नाम दे देते हैं , अब हमे इस पर विचार करने की जरूरत है.a tribute to forgeeten souls .
Thursday, November 19, 2009
चलो एक नया धरम बनाते हैं
काफी दिन से कुछ लिखा नहीं था खुजली हो रही थी सोचा कुछ लिख दूं , चलिए क्योंकि ये ब्लॉग समाज , उसकी धर्मिक एवं जातीय मान्यताओं के बारे में मेरी सोच के लिए है , तो लीजिये बंदा हाजिर है कुछ अनसुलझे पहलू लेकर .मैं मनाता हूँ की ये पूरी दुनिया सांप्रदायिक है और जो इश्वर में विश्वास नहीं करते वो कोई और दायिक हैं . कुल मिला कर सब कहीं न कहीं फसे है बिडू , वैसे तो कहने को अभी का समय सबसे विकसित माना जाता है , पर मुझे लगता है की पहले के लोग काफी बुद्धिमान थे अब देखिये न बड़ा गेम खेला उन्होंने की अभी तक हम सब उसी में फसे हैं , "वो कहते हैं न पोथी पढ़ पढ़ जग मुया पंडित भया न कोय" वही हालत हम सब की है , किताबें तो हम सबने काफी पढ़ी हैं , अब तो नए नए साधन आ गए हैं , टेलीविज़न , इन्टरनेट , अखबार सभी से हमे नयी नयी जानकारी मिल रही है , हर आदमी अपने विचारों को प्रस्तुत कर रहा है , एक कंप्यूटर की तरह अपने अन्दर फीड डाटा निकाल रहा है , दोनों मैं कोई अंतर नहीं है उनकी अपनी कोई सोच नहीं है . या ख़तम हो रही है सोचने का काम तो उन पुराने ग्रंथों ने कर दिया न हजारों साल पहले , अब क्यों सोचना वैसे भी आदमी कितना आलसी होता है , है न ! अरे भाई जिन्दगी इतनी भी जटिल नहीं है की किताबें ये ग्रन्थ , ये कुरान ये बाइबिल पढ़ कर ही जिन्दगी चलेगी , जिन्होंने ये किताबें लिखी वो बुद्धिमान थे उन्होंने रास्ता दिखाया , पर उन्होंने इससे तो मना नहीं किया की अपना रास्ता न चुनो , इश्वर ये किताबें ये ग्रन्थ नहीं है , न ही इन किताबों में वो छमता है जो इश्वर को इतने छोटे दायरे मैं बाँध सकें .
अरे मेरे भाईओं अपनी अकल लगाओ , इश्वर तक पहुचना है तो एक दुसरे से प्रेम करना सीखो , लोगों की मदद करना सीखो , अपने आप को दायरे मैं मत बांधो , आदमी हो आदमी बने रहो जैसा इश्वर ने तुम्हे बना कर भेजा है . मैं सबसे आवाहन करता हूँ की आओ हम मिलकर एक नया धरम बनाते है , जो किसी नाम , भाषा ,रंग - रूप या छेत्र की मोहताज न हो . "वो कहते है न दिखावों पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ "
अरे मेरे भाईओं अपनी अकल लगाओ , इश्वर तक पहुचना है तो एक दुसरे से प्रेम करना सीखो , लोगों की मदद करना सीखो , अपने आप को दायरे मैं मत बांधो , आदमी हो आदमी बने रहो जैसा इश्वर ने तुम्हे बना कर भेजा है . मैं सबसे आवाहन करता हूँ की आओ हम मिलकर एक नया धरम बनाते है , जो किसी नाम , भाषा ,रंग - रूप या छेत्र की मोहताज न हो . "वो कहते है न दिखावों पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ "
Saturday, October 24, 2009
नक्सलवाद और गरीब जनता
आज कल नक्सलियों का आतंक मीडिया और पूरे देश में छाया हुआ है , सभी के दिलो दिमाग में ये है की कब इस गृहयुद्ध का अंत होगा , मैं नक्सलियों की विचारधारा को नहीं जानता, हाँ ये जरूर जानता हूँ की ये गरीबों और आर्थिक शक्तियों के किलाफ़ उनका आन्दोलन है , पर मुझे समझ मैं नहीं आ रहा की ये कैसे गरीब जनता के लिए करेंगे , इनके पास कुछ विचार हैं ये गरीबी को हटाने के लिए , की खाली लोकतंत्र और पूँजीवाद का सफाया ही इन्हें ये उपाय लगता है , मुझे कुछ समझ मैं नहीं आ रहा , वैसे मेरे नक्सली भाई अगर बुरा न माने तो मैं उनसे कुछ कहना चाहता हूँ . दरसल आज से कुछ ५० या ६० पहले एक व्यक्ति हुआ था , जर्मनी में जो ये समझता था की वो जिस नसल का है उसी नसल के लोगों को इस दुनिया पर राज करने का अधिकार है , क्योकि वो सबसे पवित्र नसल हैं , ऐसा करके वो दुनिया को शुद्ध करना चाहता था , और ऐसा वो दूसरी नस्लों को ख़तम करके कर सकता है कुछ हद तक उसने किया भी , करीब ५०,००,००० लोगों का कत्ले आम किया उसने , वो बुद्धिमान था और मह्त्वकांची भी ,वो आगे बढा ,लेकिन कहा जाता है न बुधि और शक्ति का जोड़ खतरनाक होता है , हिटलर के उदाहरण में यही हुआ , मेरी नजर में नक्सलियों की हालत भी वैसे ही है ,उनके जो नेता हैं उनके पास गलत बुधि आ गयी अब शक्ति भी आ रही है ,वो भी उसी राह पर देश दुनिया का भला करने निकले हैं , अगर गरीब जनता का भला करना ही है , तो उनका भला करो न ? और वो कैसे हो वो तो मालूम नहीं , जब हम अपनी तथाकथित युद्ध जीत जायेगे तब गरीबों के बारे में सोच लेंगे ,दरसल ये लडाई बस एक सनक है जो उन्हें कही नहीं ले जा रही , गरीबी तो इनसे हटने से रही जिस व्यक्ति का ये अनुसरण करते हैं उसके देश से गरीबी हट नहीं पाई और जिसका उस व्यक्ति ने पुरजोर विरोध किया आज वही ( पूँजीवाद )उस देश की शान बढा रहा है , मैं नहीं कह रहा की गरीबी हटाई नहीं जा सकती पर ये लोग गरीबी नहीं हटा सकते क्योकि ये इनके बस की बात नहीं है क्योंकि इन्हें मालूम ही नहीं है की गरीबी हटाई जाये तो कैसे ? अब गरीब जनता के सिपाही गरीब जनता को ही अपनी हिंसा का शिकार बना रहे है , और इसे युद्ध का नाम दे रहे हैं वाह रे नक्सलवाद !
Thursday, October 22, 2009
धरम ,जाति गई तेल लेने .
जब एक बच्चा पैदा होता है , तो उसे नही मालूम होता की वो किस धर्म , जाति का है , उसकी प्यारी सी मुस्कान हमे इश्वर कें बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है , की इतना आदर्श निर्माण तो उस शक्ति का ही कोई कर सकता है , जब सभ्यताओं का निर्माण हो रहा था , तब कुछ बुद्धिमान लोगों ने लोगों को जीवन जीने के तरीके बताये और कहा की एक इश्वर है जो आप सब को बनाने वाला है ,वो सर्वसक्तिशाली है वो सब जनता है वो आपके दुखों को दूर करेगा , लोगों ने उन संतो की बात को सुना और आगे चल कर उन्ही संतो के उपदेशों पर आधारित धर्म बने , फिर उसमे समय समय पर परिवर्तन आए वो सही और ग़लत दोनों थे , ये देश ,समय , काल पर आधारित था , ग़लत लोगों ने ग़लत चीजें जोड़ी , सही लोगों ने सही चीजें । सदियों से वही परम्पराएं वैसे ही पालन हो रही थी , कारन उस समय पढ़े लिखे लोगों की कमी थी ,बाद मैं जब पढ़े लिखे लोगों की संख्या बड़ी तो उन चीजों पर सवाल उठने लगे ,तो यह कुछ लोगों को बर्दास्त नही हुआ , उन्हें लगा की उनसे कोई अनमोल चीज छीनी जा रही है , बजाय की आपस मैं बैठ कर बात करने के तरह तरह के विचार आने लगे ,सब अपनी सुविधा के अनुसार कह रहे थे । हम उस समय काल में जी रहे हैं , जहाँ लोग बीच में फसे हैं पूरी तरह पुराने भी नही हैं ,और नया स्वरुप भी उन्हें स्वीकार नही । में कहता हूँ क्या जरूरत है इन धर्मों की इन जातियों की , अब तो समाज और भी पढ़ा लिखा है , उसे अपने जीवन को कैसे जीना है पता है , जब हम किसी बच्चे के ऊपर किसी धर्म , जाति का तमगा लगा देते हैं , तो हम उसे हर उस दूसरी चीज से वंचित कर देते हैं जो दुनिया में हो रही हैं , क्यों नही हम उसे बिना किसी धर्म , जाति के तमगे से दूर रखकर अपना तरीका चुनने दे उसे क्या बनना है उसे चुनने दें , हाँ हम उसे सामन्य सही ग़लत बताएं पर खुला छोड़ दे उसे , और देखें की उनका अपना भविष्य किसी भी द्वेष , इर्ष्या से कैसे दूर हो रहा है .
सही ग़लत को जानें .
आज काफ़ी दिन बाद मन किया की चलो कुछ ब्लॉग पढ़ें , उन्हें पढ़कर मुझे पूरा यकीं हो गया की कलयुग इस वक्त सबसे जायदा प्रभावी है , क्योंकि सभी तरफ़ से उस दुनिया के विनाश की कोशिशें जारी हैं जो उनके रहनें की जगह है , सब कहतें की हम दुनिया बचायेंगे ,क्यूंकि उसका तीस मार खान नुक्ता तो हमारे पास ही है , और सब तो चूतिया हैं , और बात यहाँ ख़तम नही होती , अब दुनिया को बचने से पहले उन दूसरे विचारों को ख़तम भी तो करना है ,अब तरीका कोई भी हो , कोई मुसलमानों को सबसे बेहतर बताता है कोई इसाई को तो कोई हिंदू को , तरीका एक की ' खूब सारे जानकारियां जमा करो ,उनका खूब जोर शोर से प्रचार करो और सीधे साधे लोगों को बेवकूफ बनाकर उनमे दूसरे विचारों के लोगों के प्रति घृणा पैदा करो ' , सभी धर्मों के संगठन कमोबेस यही तरीका अपनाते हैं ।मसलन मान लीजिये की दो व्यक्ति जैसे की एक पंडित और दूसरा कोई नीची जाती के वक्ती के बीच में किसी मामूली से मसले पर विवाद हो जाता है , अब किसी को विवाद पैदा करना है तो बस दूसरे जाती के व्यक्ति के बारे में जातीय (घ्रिनात्मक ) इतिहास बताकर विवाद पैदा कर दिया , इस बात में कोई शक नही है की भारत जैसे असाम्प्रदायिक देश में कई सारी ऐसे बातें हैं जो साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती हैं , पर इसका हल आपस में लडाई नही , क्या हम पाकिस्तान या और मुस्लिम या किसी इसाई रास्त्र की तरह होना चाहते हैं , ये समय हमारे लिए मुश्किलों भरा जरूर हो पर हम सही रास्ते पर हैं । आप सभी से मेरा अनुरोध है की कृपया सही और ग़लत में फर्क समझें ।
धन्यवाद .
धन्यवाद .
Friday, October 16, 2009
बस बहुत हुआ
अब बस बहुत हुआ , मैं अब और नही सहूँगा , मैं और जूठ का भागीदार नही बनूँगा ,अब मैं बोलूँगा ,जरूरत पड़ी तो हथियार उठाऊँगा , मैं उन्हें मारूंगा जो इस देश को , इस विश्व को गन्दा कर रहे हैं । अब सहा नही जाता , नक्सालिस्म , रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हिंदुत्व , और जितने भी संगठन हैं कोई इंसान के लिए नही लड़ता सब झूठी लडाई लड़ रहे हैं , इन्हे अपने को इंसान कहते हुए भी शर्म नही आती , अरे कमीनों जिसके लिए लड़ रहे हो , उसी का कत्ल कर रहे हो , अरे कुछ करना तो पहले अपने अन्दर के शैतान को मारो , बड़ी बड़ी डिग्रियां लेकर भी ये जान नही पाए की जिस भगवान् के लिए लड़ रहे हो वो भी इस लडाई की क़द्र नही करता , वो तो तुम जैसे घिनौने लोगों से नफरत करता है , और मैं भीचेतावनी दे रहा हूँ तुमको हट जाओ वरना मारे जाओगे , सच ये है की तुम सब इंसान हो और इंसान ही बने रहो जानवर नही , वरना जल्दी ही बुरे दिन सुरु हो रहे तुम लोगों के .
Tuesday, September 1, 2009
पप्पू पास हो गया !
अरे पप्पू पास हो गया ! हाँ भाई पापू पास हो गया , मैं रोया , सारा देश रोया ,हमे अपने भारतीये होने पर बड़ा गर्व हो रहा था की आख़िर इतनी सालों की मक्कारी के बाद आखिर पप्पू पास हो गया ,अरे पप्पू कहाँ पास हुआ ? अरे पप्पू पास हुआ ओलंपिक्स में ,जहाँ आखिर हमने एक सोना जीत ही लिया ,सभी उसके पास होने की खुशी मना रहे थे , अभी कुछ दिन पहले पप्पू फिर पास हुआ , नेहरू कप में जब उसने कप जीता ,सभी बधाई दे रहे थे , की अरे इतनी मक्कारी कर भी हमारा पप्पू पास जो रहा है , पर मुझे चिंता है ' पप्पू को स्नातक जो कराना है' ,पर ये क्या पप्पू तो अभी भी मौज कर रहा है , वही बदस्तूर मक्कारी बीमारी है और " पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब और खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब मंत्र अब भी हम पर भारी है , अरे जाग जाओ पप्पुओं , मक्कारी बंद करो ,कुछ शर्म करो अपने देश के लिए न सही अपने लिए ही सही ,की कहीं बाहर वाले आ कर ये न कहें की पप्पू तो गवार का गवार ही रह गया .
धन्यवाद
Friday, August 28, 2009
रोष
आज मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है ,पता नही की यही गुस्सा मेरे जैसे युवाओं में यही गुस्सा है की नही ? पर मुझे ये कोई बताये की ये किसने कहा की "पढोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब " ये किस कुत्ते कमीने ने बोला था , अगर वो आज जिन्दा होता तो में उसे जान से मार देता । आज जो पूरे समाज की दशा हो गई है यही कारन है मेरे पूरे कालोनी में कोई भी ढंग का ग्राउंड नही है जिसमे बच्चे खेल सकें , हम अपने बच्चो को क्या सिखा रहे हैं , हमने खेल को खेल ही समझा इसी वजह से ओलम्पिक्स में हमारा प्रदर्शन जह जाहिर है , भारतीय होते मुझे इससे इतनी शर्म आती है की कभी कभी सोचता हूँ की में किस देश में पैदा हो गया , जहाँ लोग जाति , धर्म जैसे निहायती निक्रिस्ट चीजों पर ही ध्यान है , अरे सेक्स तो यहाँ सबसे बड़ा पाप है जैसे की १ अरब जनसँख्या क्या ऐसे ही हो गई , मेरा बेटा , बेटी कहीं बिगड़ न जाए ये सबको डर है , उन्हें यही नही पता की सबसे बिगडे तो ये ख़ुद हैं , सेक्स करना है तो शादी के बाद करो , मैं पूछता हूँ की जब ये शादी के बाद ग़लत नही तो शादी के पहले कैसे ये ग़लत कैसे हो सकता है , अरे जब सेक्स इतना ही ग़लत है तो तो १० -१० बच्चे क्यों पैदा किए बैठे हो , तब तो ये एंजोयमेंट की चीज हो जाती है क्या करें और कुछ है नही न , तो बीबी ही सही ! पर बच्चे वही एंजोयमेंट पाने की कोशिस करें तो ग़लत । हमें ये मान लेना चाइए की हम एक दोगले विचारों वाले देश मैं रह रहे हैं , और अब आती है बारी हमारे महापुरषों की यानि हमारे पूर्वजों की मैं मानता हूँ की वो एक नम्बर के गधे थे , यार तुमने कोशिस क्यों नही की इन सब चीजों को हटाने की। मानता हूँ की आम लोग बेवकूफ होतें पर तुम तो बुद्धिमान थे । मैं सभी लोगों से ये अनुरोध करता हूँ की मेरी लिखी गई बातों पर गौर करें ।
धन्यवाद
धन्यवाद
Wednesday, August 5, 2009
उलझन
आज कल कहीं मन नही लगता , बस यूँ ही घूमता रहता है , यही सोचता रहता है की क्या सपने सच होते हैं , "मेरे सपने " । बचपन में देखे बिना किसी रोक टोक के सपने , वो उड़ने की ख्वाहिश , उछल कर आसमा को चूम लेने की ख्वाहिश , बादलों के बीच घर बनाने की तमन्ना , जब छोटे थे तो बड़े बनने का बड़ा मन करता था , बड़े होकर सपने जो पूरे करने थे , तब लगता था की सब चीज कितनी अच्छी है , सुंदर है , बिना बात के हँसना , रोना , गुस्सा होना , भाई , बहनों , दोस्तों से लडाई करना , फिर मनाना , फिर सब कुछ भुला के फिर से खेलना , वो बारिश , वो कागज़ की नाव, एक टॉफी ही दिल खुश कर देती थी , पहले खुशी ही जिन्दगी थी अब जिन्दगी में खुशी दूंदते फिरते हैं , सपने नॉन प्रैक्टिकल लगते हैं , उड़ने की कौन कहे चलने में डर लगता है , बड़े होकर भी अब बच्चा बनने का मन करता है .
Tuesday, June 9, 2009
प्रश्न और उत्तर
मैं बहुत अच्छी हिन्दी नही जानता , इसलिए कोई मुहावरा , व्यंग या कोई कविता से अपनी बात नही कह सकता , मेरा ग्यान भी काफ़ी कम है हमारे कथित बुद्धिजीवी वर्ग से , तो शायद मैं उनकी बातों का जवाब भी न ही दे पाऊँ , पर मेरे पास भी कई सवाल हैं , शायद वो जवाब दे पाएं , चलिए शुरु करता हूँ , हमारे देश में अभी अभी चुनाव हुए , हम देश के भविष्य के लिए चुनाव कर रहे थे , चुनाव हुआ भी , ग़लत या सही ये वक़्त बताएगा , एक बात प्रमुख थी देश के अधिकतर दल साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ रहे थे , जो सांप्रदायिक था उस पर हम बाद में आयेंगे , पर मैं ये जानना चाहता हूँ , की हमारे देश में कितने लोग सांप्रदायिक नही हैं ,धर्म , जाति , भाषा के नाम पर भेद नही करते , मैं यहाँ साम्प्रदायिकता का समर्थन नही कर रहा बस कुछ कहने की कोशिश कर रहा हूँ । हमारा इतिहास रहा है , धार्मिक दंगो , जातीय विवादों , भाषा और छेत्र के नाम पर लड़ने का , और अभी भी है क्यों अभी भी लोग दूसरी जाति, धरम के लोगों में विवाह से परहेज करते हैं , उन्हें अछूत मानते हैं । क्या आप सब उनमे से एक नही , मैं एक टेलीविजन के एक प्रख्यात चैनल जिसमे सबसे अधिक बुद्धिजीवी पत्रकारों का जमावडा है , मैं उनको काफ़ी दिनों से देख रहा था , उनके विचारो को सुन रहा था , मुझे काफ़ी दुःख हुआ की इनके पास भी कोई जवाब नही है , भ्रम फैलाने में इनका भी उतना बड़ा हाथ है , जितना की इन कथित सांप्रदायिक , असाम्प्रदायिक दलों का है । मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की आज साम्प्रदायिकता की धुरी मुस्लिम समाज है , जो मुस्लिम हितों की की बात करो तो सेकुलर वरना नही , इस देश में साम्प्रदायिकता आज बस एक आग है जिसमे बस घी डालने की देर और आग भड़क उठी , दरसल हमारे कथित बुद्धिजीवी वर्ग के पास अन्य चीजों की तरह इसका भी कोई हल नही है क्योकि वो भी इसका हिस्सा हैं , दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की आजादी के ६० साल बाद भी हम ऐसे मुदों पर बात करते है जबकि इस देश में ७० प्रतिशत लोग खाने पीने तक को मुहताज हों , और बातें तो दूर की बात हैं । ओह अब मुझे ये लग रहा है सारा बुद्धिजीवी वर्ग मेरे सामने निरुतर खड़ा है और जवाब मेरे पास है, और एक बात और तुम सब मुझसे डरो क्योकि मेरे पास जवाब है और मैं ही आने वाला कल हूँ । और तुम सब बुधिमानो इस देश को इतने सालों तक बेवकूफ बनाने के लिए मैं तुम सबको बख्सने वाला नही हूँ ।
Friday, March 13, 2009
दर्द
आज मेरा मन रो रहा है , चिल्ला रहा है ,माँओं, बहनों के लिए, पत्नियों के लिए, बापों के लिए जिन्होंने अपना बेटा ,भाई , पति खोया , जिन माँओं बहनों , पत्नियों ,बेटियों का बलात्कार हुआ उनके लिए , क्योंकि हम सौभाग्य से वहां नही थे हम नही समझ सकते की उन पर क्या गुजर रही होगी जब उनके परिवार का कोई मारा जा रहा होगा , उन्हें कैसा लग रहा होगा जब उनके बेटे , बापों को उनके सामने जलाया जा रहा होगा , उनके गले काटे जा रहे होंगे , उनकी बहनों , बेटियों के साथ बलात्कार हो रहा होगा , क्योंकि ये हमारे साथ नही हुआ, हम कैसे इसे समझ सकते हैं ये तो हमारे लिए बस ये एक न्यूज़ ही है , हम भूल जाते हैं , पर ये कभी सोचा की उनके परिवार वाले इसे कैसे भूल सकते हैं वो नही भूल सकते हैं , क्योकि जब ये पल जब उनके साथ बीत रहा था तो वो हजारों मौत मर रहे थे , वो एक -एक पल उन्हें ये एहसास करा रहा था की जिन्दा होकर भी मरना क्या होता है , मैं जब भी किसी नेता कों, लीडर को , शासक को जिन्दगी और मौत की बातें करते देखता हूँ तो ये लगता है की उनके लिए ये बात करना कितनी ना इंसाफी है क्योंकि उनकी वजह से लाखों बापों ,बेटों का कत्ल हुआ , बेटियाँ , बहनों के साथ बलत्कार हुआ , हमारा भाग्य कितना अच्छा है की हमें केवल ख़बरों का ही सामना करना पड़ता है ,कि हम कश्मीर , गाजा पट्टी , पाकिस्तान में पैदा नही हुए जहाँ जिन्दा रहना ही जिन्दगी का उद्देश्य है , फिर भी हम बड़े आराम से अपने किसी नेता कि बात मैं हाँ से हाँ मिलते हुए कहते हैं कि हम तो शांतिप्रिय हैं , पर अगर कोई दूसरे धरम या संप्रदाय का हमारी शान्ति भंग करेगा तो हम जवाब देंगे ," जवाब में क्या दंगे करेंगे !" और अपनी सरकार बनायेंगे और अपने कों विकास पुरूष कहेंगे , आप नही आपके नेता । अरे बुधिमानो जिन्दगी का जाति और धरम से कोई नाता नही होता । कम से कम उनकी माँओं और बहनों के लिए नही , अपनी माँ और बहनों के लिए ही जागो । क्योंकि लखनऊ ,डेल्ही कों "गोधरा ", और गुजरात बनते देर नही लगेगी .
Thursday, March 12, 2009
क्रांति
हम ही समाज बनाते हैं और समाज देशों का भविष्य तय करते हैं , हम बहुत आसानी से अपनी गलती दूसरो को मसलन "सरकार " की गलती है कहकर टाल देते हैं , चलिए मैं आपको आत्मदर्शन कराता हूँ , शुरुआत मैं धरम से करता हूँ चलिए बताइए धरम चीज क्या है , हिंदू ,मुस्लिम इसाई या सिख क्या इसे धरम कहते हैं ? या आज कल टेलीविजन पर विभिन्न चैनलों पर जो प्रचारक धरम की परिभाषा बतातें है क्या वो धरम है , अपनी विभिन्न धर्म किताबों के जरिये वो ये कहतें की बस वो किताब ही इश्वर के वचन है , क्या इन सब ने हमें चूतिया समझ रखा है , धरम जीवन जीने का एक तरीका है , और ये धरम इस दुनिया में है ये बस उस तरीके को अपनी तरीके से बताते हैं .
अब भारत देश में तो एक बिमारी और भी है वो है जाति की बीमारी , अब आप मुझे बताएं की ये जाति क्या होती है ? वर्ण व्यवस्था से निकली ये जाति अब जा ही नही रही है जबकि वर्ण व्यवस्था कबकी चली गई . हमारी जड़ों में ये चीजें इतनी बुरी तरह से बसी हैं की हम इसे प्रूफ़ करने के लिए तरह - तरह के तर्क देते हैं जैसे की " मैं भी इन चीजों को नही मानता पर अपने माँ बाप को दुखी नही कर सकता" , अगर दहेज़ प्रथा पर बोलना हो तो सब इसकी किंतनी ही बुराइयाँ निकाल देंगे , पर जब बात अपने पर आती है तो हर आदमी अपने हिसाब से अपना दाम लगता है और तर्क देता है की अरे कौन सा प्रेम विवाह है कुछ पैसा ले लिया तो क्या ग़लत किया , कितनी गन्दी मानसिकता है , अब वो वक्त आ गया है की समाज को नंगा कर करके चौराहे पर खड़ा कर दो और उसे शर्म लगने दो अपने ऊपर , अगर आप भी ऐसे हैं तो तैयार हो जाइये नंगा होने के लिए या मेरे साथ खड़े होइए , क्योंकि मैं और मेरे जैसे हजारों नौजवान अब तैयार हैं ।
गुलामी
अब मुझे गुलाम नही रहना , अरे तुम गुलाम कहाँ हो ? हाँ मैं गुलाम हूँ , अगर मैं अपने ही धरती पर अपने ही लोगों के खिलाफ नही बोल सकता तो मैं गुलाम हूँ , मैं अगर अपनी जाति या धरम से बाहर जाकर विवाह नही कर सकता तो मैं गुलाम हूँ , मैं उन रुढिवादी रीति रिवाजों का गुलाम हूँ जो हमे इंसान होने पर शर्म महसूस कराती हैं । १९४७ में स्वतंत्र तो हो गए, " पर अंग्रेजों से" , अपने आप और अंपने लोगों लोगों के गुलाम तो हम अभी भी हैं , हाँ आज हमे हमारे वो सारे अधिकार प्राप्त हैं जो हमे स्वतंत्रता का अनुभव तो कराती हैं पर यह एक झूठा अनुभव है , ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ कुछ लोग जो सालों से यहाँ राज कर रहें हैं और अपने आप को जनता का प्रतिनिधि बतातें हैं , अपने मन से पूछिए क्या वो हमारे हितों की रक्षा कर रहे हैं या अपने । हाँ मुझे स्वंतंत्र होना है और मैं अब चुप नही बैठूंगा अब मैं बोलूँगा और आपके ख़िलाफ़ भी बोलूँगा आपको बुरा लगे तो लगे क्योंकि आप भी तो मेरी गुलामी में भागीदार हैं .
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