कई दिन बाद मैं वापस ब्लॉग पर वापस इस लिए आया , क्योंकि आज मुझे कुछ सोच कर बहुत गुस्सा आ रहा था , भारत में एक शब्द का बड़ा महत्व है वो बड़ा शब्द है " समाज " , आखिर क्या है ये समाज , कब इसकी जरूरत आती है , आज हमारे देश में करोरों लोग एक वक़्त का भोजन भी नहीं खा पाते , उस वक़्त ये समाज कहाँ चला जाता है , जब मेरे परिवार वाले मुझे पढ़ाने के लिए जद्दो जहद कर रहे थे , तब इस समाज ने क्या किया , इन सब चीजों का तो मैं आज तक पता नहीं लगा पाया , हाँ लेकिन एक काम समाज जरूर करता है , शादियाँ करवाता है , अब आप सोचेंगे ये तो अच्छा काम है , पर पिक्चर तो अभी बाकि है मेरे दोस्त यानि "शर्तें लागू " . तो वो शर्तें क्या है , शादी आप अपनी मर्जी से नहीं कर सकते जनाब , हाँ जिसके साथ आप को जिन्दगी काटनी है , उसे आप नहीं पसंद कर सकते , ये काम केवल आपके घर वाले कर सकते हैं , अब इसका गलत मतलब नहीं निकालिएगा , ये तो हुई पहली शर्त , दूसरी शर्त भी है , अब वो क्या है , लड़की आपके " धरम " और "जाती " की होनी चाहिए , ये हमारा "समाज " कथित धरम और जाती के बाहर विवाह की इजाजत नहीं देता . लेकिन कई लोगों से पूछने पर उनके पास इस चीज का कोई सही जवाब नहीं होता , की ये चीजें हैं क्या . कई बार ये लगता है की लोग जानते हुए भी अनजाने बना रहना चाहते है , कहने को मंदिर , मस्जिद भगवान को याद करने , और उन्हें शुक्रिया करने की जगह हैं , की उन्होंने हमे इस ब्रह्माण्ड का सबसे बुद्धिमान और खूबसूरत प्राणी बनाया , पर हमे देखो हम तो उन्हें भी मंदिर , मस्जिद और चर्च मैं बात दे रहे हैं , भगवान् अगर सामने आ कर कह भी दे की ये जाती धरम कुछ नहीं होता , तो ये समाज उन्हें भगवान् मानने से इंकार कर देगा , कहेगा हमारा भगवान् ऐसा नहीं है , जैसे हम चाहते है वैसा है , शायद कुछ लोग तो शायद उन्हें मारने ना दौड़ पड़े .
हाय रे चूतिया समाज , उसके चूतिया रीती रिवाज
my blog is mutiny against all conventional old things , which is a baggage to a common man .hence it is my voice against all untruthful things happening in the society .
Wednesday, December 15, 2010
Friday, October 22, 2010
देश का दुश्मन " जाकिर नाइक "
आज यहाँ पर मैं जाकिर नाइक के कुछ वीडियोस पोस्ट करने जा रहा हूँ , ये सब के लिए कृपा करके सोचें की ऐसे व्यक्ति समाज में जहर फैला रहे हैं और फिर भी हमारा देश सो रहा है .
" जाकिर नाइक" नफरत और आतंकवाद को सही ठहराने वाला "
"जाकिर नाइक "बेहूदा जवाब "
ऊपर गाढे शब्दों में लिखे गए शीर्षक ही एक "youtube " वेबसाइट के लिंक है . कृपया इन पर क्लिक कर वीडियोस को देखें और सुझाव दें की क्या जाकिर नाइक जैसे व्यक्तियों को ऐसे खुली छूट मिलनी चाहिए लोगों को गुमराह और बरगलाने के लिए .
" जाकिर नाइक" नफरत और आतंकवाद को सही ठहराने वाला "
"जाकिर नाइक "बेहूदा जवाब "
ऊपर गाढे शब्दों में लिखे गए शीर्षक ही एक "youtube " वेबसाइट के लिंक है . कृपया इन पर क्लिक कर वीडियोस को देखें और सुझाव दें की क्या जाकिर नाइक जैसे व्यक्तियों को ऐसे खुली छूट मिलनी चाहिए लोगों को गुमराह और बरगलाने के लिए .
Monday, July 5, 2010
भविष्य हमारा है . धरम जाती मुक्त समाज हमारा नारा है .
हम भविष्य हैं , और हम ये सीना ठोक कर कहेंगे , मैं बात कर रहा हूँ , उस भविष्य की जिसकी आज के धर्मगुरु , इज्ज़त के नाम पर अपने ही बेटे , बेटियों की हत्या करने वाले दरिंदो की सोच से बाहर है , मैं बात कर रहा हूँ धर्म , जाति , रंग से स्वतंत्र दुनिया की , कई लोगों को लगे की ऐसा होना असंभव है , और कई लोग जो ये कहते आते हैं , की उनका रास्ता ही सही रास्ता है , या उनकी धार्मिक किताब ही सही रास्ते की तरफ लेकर जाती है , या केवल इन्ही के धर्म में शामिल होकर ही इश्वर को प्राप्त किया जा सकता है , वो तो उबल पड़ेंगे , कह्नेगे की ये क्या कह रहा है, इसका दिमाग ख़राब है , उन्हें गुस्सा आएगा , हमे ख़तम करने की कोशिस होगी , क्योंकि उनका तो मामला ख़तम हो जायेगा , कैसे वो लोगों को भटका कर पैसे कमाएंगे , कैसे उन पर राज करेंगे?
लेकिन अब अगर इनको जिन्दा रहना है , तो हमारी बात माननी होगी क्योंकि जल्दी ही हम जैसे युवा सड़क पर उतरने वाले हैं , और जब हम उतरेंगे बहुतों के कपडे फाड़ने वाले हैं . तो भैया या तो हमारे साथ आ जाओ , या डूब मारो जाकर किसी नदी में .
लेकिन अब अगर इनको जिन्दा रहना है , तो हमारी बात माननी होगी क्योंकि जल्दी ही हम जैसे युवा सड़क पर उतरने वाले हैं , और जब हम उतरेंगे बहुतों के कपडे फाड़ने वाले हैं . तो भैया या तो हमारे साथ आ जाओ , या डूब मारो जाकर किसी नदी में .
Sunday, June 27, 2010
खेल ,खेल प्रमुख और लोकतान्त्रिक मीठा
आज भारतीय खेलों की गजब दुर्दशा है , पर हमारे खेल प्रमुखों के क्या कहने वो सालों से गजब खेल, खेल रहे हैं , कोई २० साल से संघ में जमा हुआ है कोई ४० साल से , पर हमारे खेल वैसे के वैसे ही बने हुए है , हौकी जैसे खेल तो देश गर्व से देश शर्म में परिवर्तित हो गए है , पर क्या फर्क पड़ता है , किसी को क्या पड़ा है , अब तो हमारी मानसिकता ही वैसे हो गयी है , हर ओलम्पिक्स के बाद हम अपना स्थान नीचे से ही ढूँढ़ते हैं , और ये देख कर गर्वान्वित होते की हमारे नीचे कितने रास्त्र हैं , किसी को ये परवाह नहीं की देश का स्वाभिमान कोई चीज है , पूछने पर की नेता जी कुर्सी कब छोड़ रहे हो , बिना किसी शर्म कहते हैं हम लोकतान्त्रिक तरीके से चुने गए हैं , क्या फर्क पड़ता की जनता क्या चाहती है . पारंपरिक ओलंपिक्स खेलों से मैं एक दूसरे खेल पे आता हूँ ,जिससे भारत में धरम का स्थान प्राप्त है "क्रिकेट" , आप सब को शायद ये नहीं मालूम होगा , इसे भारतीय सरकार नहीं एक व्यग्तिगत संस्था जिसका नाम बी सी .सी आई है चलाती है , अगर देखा जाये तो हमारी भारतीय टीम का नाम बी .सी .सी .आई रख दिया जाये तो गलत नहीं होगा , वैसे हम लोग खेल से कितना प्यार करते हैं , ये हमारे नेताओं से पता चलता है ,देखो क्रिकेट का प्रेम उन्हें यहाँ तक खीच लाया की अब क्रिकेट वही चला रहे हैं , हमारे कृषि मंत्री तो इतने बड़े प्रेमी हैं की अब वो .आई .सी .सी के अध्यक्ष बन बैठे हैं , लगता है कृषि मंत्रालय के पास कोई काम नहीं रहा , रहेगा भी कैसे जब हमारे कृषि मंत्री को हमारे भूख से मर रहे देशवासियों से ज्यादा क्रिकेट पे प्यार जो आ गया है , वैसे मेरा मन नहीं मान रहा आप को शाबाशी देते , की दुनिया में आप एक मात्र ऐसे कृषि मंत्री होंगे जो पहले से ही दामों के बढ़ने का ऐलान कर देते है , वाह रे मंत्री जी ! लेकिन अचानक ये क्रिकेट प्रेम हमारे नेताओं में आया कैसे? ओह अब समझ में आया , हमारा क्रिकेट बहुत सारा मीठा ( हजारों करोर रुपइए ) जो बना रहा है , अब मखियाँ का भिनभिनाना तो वाजिब है , अब कोई इसके बारे में क्यों नहीं बोल रहा , मीठा सभी को मिल रहा है , कांग्रेस , बी .जे .पी और हमारा प्यारा मीडिया , अभी हजारों करोर का घोटाला हुआ , पर किसी की हिम्मत जो बोल जाये , फिर भी हमारा देश आगे बढ़ रहा है , जब तक हमारे साथ ये शब्द है "जुगाड़ "
Friday, June 25, 2010
जाकिर नाइक ये क्या कह रहे हैं ?
मेरा ये पोस्ट जाने माने मुस्लिम विद्वान श्री जाकिर नाइक के बारे में हैं , मैं उनकी अदभुत प्रतिभा का कायल हूँ , इस लेख को लिखते हुए मैं ये भी बता देना चाहता हूँ की मैं मुस्लिम विरोधी एक दम नहीं हूँ अगर कोई बात बुरी लगे तो मुझसे आप बिना किसी झिजक बात कर सकते हैं , मैं कई दिनों से श्री जाकिर नाइक जी को सुन रहा हूँ वो जिस तरह से विभिन्न धर्मों की किताबों में लिखी चीजों का उदाहरण लेते हैं वो अदभुत हैं , उन्हें लाखों की संख्या में लोग सुनते हैं , और अमल भी करते हैं , पर यहाँ मैं जो कहने जा रहा हूँ वो मेरे मुस्लिम भाईओं के लिए है, कि महज किताबी ज्ञान होना काफी नहीं हैं , किताबें तो इंसान ने लिखी हैं , वो गलत भी हो सकती हैं , यहाँ पर जाकिर साहब एक दम साधारण हो जाते हैं , उनके तर्क जो किसी ना किसी किताब के उठाये होते हैं , वो बेवकूफी भरे लगतें हैं , मसलन मुस्लिम धरम में चार शादियों की बात पे वो कृष्ण और हिन्दू राजाओं का उदाहरण देते हैं , पर आप ही बताएं क्या ये सही है, कितने मुस्लिम भाई हैं जो एक से अधिक शादी करने की छमता रखते हैं ? और क्या ये पहली बीबी के साथ अन्याय नहीं होगा ? या महिलाएं केवल बच्चा पैदा करने की मशीन हैं ? उनका कोई हक नहीं ? ये सब अमीर मुस्लिमों के बस की ही बात है और अय्यासी के आलावा कुछ नहीं .
अब मैं दूसरे मुदों पर आता हूँ , जिसके कारण आज पूरा मुस्लिम समाज शर्मशार होता है , वो है आतंकवाद का मुद्दा , आतंकवाद पर पूछे गए एक सवाल जिसमे ये पूछा गया था की ओसामा बिन लादेन एक आतंकवादी है या नहीं ? उस पर जाकिर साहब कहतें हैं की क्योंकि मैं ओसामा बिन लादेन से नहीं मिला मैंने जो भी देखा सुना है वो वो सी ऐन ऐन , और बी .बी .सी जैसे चैनलों से ही सुना है इसलिए मैं ये नहीं कह सकता की वो एक आतंकवादी है या नहीं है , क्योंकि न्यूज़ कई बार बनाई जाती है , तो वो किस आधार पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बुश को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी बताते हैं , क्या वो बुश से मिले हैं ? उन्होंने कई इन्टरनेट सर्वेक्षण का हवाला दिया क्या ये सभी इन्टरनेट पोल्स गलत नहीं हो सकते या बनाये नहीं जा सकते . अगर कोई साधारण मुस्लिम ये बातें करता तो मैं उसकी नासमझी समझ कर उसे समझाता , पर डॉक्टर नाइक तक मेरी पहुच नहीं है , इसलिए आप सब मुस्लिम भाइयों जो की जाकिर नाइक साहब को सुनते है जिनकी संख्या लाखों में है यही कहूँगा की अच्छी समझ होने के लिए किसी किताब की जरूरत नहीं होती बस अच्छी सीरत होनी चाहिए . भगवान् या अल्लाह ने आपको भी अकल दी है उसका प्रयोग करें . कुछ मुस्लिम विद्वानों की राय मैं नीचे दे रहा हूँ वो भी पढ़ लें .
Lucknow based cleric Kalbe Jawad argued that "Naik is bringing a bad name to Muslims. Such people should be condemned and socially boycotted" and claimed that Naik was being financed by the Wahabi mugged up some verses from the Koran and pretends to be an Islamic scholar" sect that supposedly perpetrates violence in the name of Islam and expressed the need for an inquiry into, how Naik was running a TV channel on his own and where he received the funds from. Another Lucknow cleric Naib Imam Maulana Khalid Rasheed Firangi Mahali claimed that Naik has"mugged up some verses from the Koran and pretends to be an Islamic scholar"
Sunday, June 6, 2010
हम इंसान या जानवर !
आज टी.वी देखते वक़्त एक चैनल पर आ कर हाथ रुक गए , उस चैनल पर कुछ ऐसा आ रहा था , जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया , जो की इस ब्लॉग का शीर्षक है की कहीं हम जानवरों से बदतर तो नहीं हो गए ? लेकिन फिर मुझे लगा की ऐसा कहकर मैं जानवरों की बेइजती तो नहीं कर रहा , क्योंकि अगर हम वन्य जीवन को देखें तो पाएंगे की जानवरों के भी कुछ उसूल है और वो उन्ही पे चल कर अपना जीवन काटते हैं ,
अब हम इंसानों के लिए इससे भी बुरी कोई संज्ञा दूढ्नी पड़ेगी , दरसल मैं भारत में बाघों की दशा पर एक सीरियल देख रहा था , मुझे ये देख कर बड़ा दुःख हुआ की अब इंसान पैसे के लालच के चलते इतना गिर जायेगा की वो बाघ जैसे खूबसूरत जानवर की जान के पीछे पड़ जायेगा , जो इन्हें मारते हैं वो तो इस जघन्य अपराध में दोषी हैं ही जो इनका साथ देते हैं वो इनसे भी बड़े दोषी हैं , भारत सरकार ने वन्य जीवन की रक्षा के लिए जिन - जिन को नियुक्त किया है आज वो रक्षक की जगह बक्षक बन गए , ये हम सभी को पता है की वन विभाग में हर कोई अपनी नियुक्ति चाहता है , और वो ऐसा क्यों चाहता ये भी सबको पता है , लेकिन अब तो हद ही हो गयी है , ये पढ़े लिखे "आइ
.ए .यस" , पी .सी .यस अधिकारी "हैं, अब और क्या कहा जाये , यहाँ से खामोस हो जाना ही बेहतर है , पर ये खामोसी कमजोरी नहीं है , अभी तक कुछ नहीं हुआ तो अब होगा , मेरी आप सब से प्राथना है , चुप ना बैठें आवाज उठाएं , नहीं तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब बाघ केवल किताबों ही दिखेंगे .
धन्यवाद .
Wednesday, April 7, 2010
हिन्दू , इस्लाम , और इसाई धर्मों की कमियां
आज काफी दिन बाद मैं कुछ ब्लोग्स पढ़ रहा था , मुझे ये देख कर आश्चर्य होता है , की लोग किस तरह उन चीजों को मान रहे , जिसका एक आदमी के जीवन से कोई लेना देना नहीं है , हर बार तरह इस बार भी मेरा हमला विभिन्न धर्मों , जातियों और विचारों पर हैं जिनके पीछे किसी भी तरह की सोच नहीं है , उनसे घृणा , इर्ष्या , अज्ञानता की बू आती है , इस बार मैं हर धर्म के कुछ पहलूँ को उठाऊंगा , हमारे धरम में दान देने बहुत अच्छा माना जाता है , जब भी कोई विशेष अवसर होता है तो लोग ऐसा करते भी हैं , पर कहाँ ? बड़े -बड़े मंदिरों पर हर साल अरबों का चढावा चढ़ता है , जिस देश में बड़ी आबादी को खाने को लाले हों , उनको अनदेखा कर के कुछ मठों , और मथाधीसों को मोटा करना कौन सा धार्मिक काम हैं , जातियों पर पहले भी काफी कुछ कह चुका हूँ , जातियां हमारे पूर्वजों की सबसे बड़ी मूर्खता थी इसमें कोई शक नहीं है . अब आता हूँ इस्लाम पर , बुरका प्रथा से मुझे काफी ऐतराज है, मैं मानता हूँ की ये प्रथा महिला समाज के प्रति घोर अमानवीयता को दर्शाता है जिसका जितना हो सके उतना विरोध होना चाहिए , अब मैं आता हूँ हमारे देश के तीसरे प्रमुख धरम इसाई धरम पर , इनके अंदरूनी मामलों की जयादा जानकारी मुझे नहीं है, पर इनकी मिसनरीज जिस तरह से काम करती है , वो अच्छा नहीं है , वो ये मानने से इंकार करते हैं की वो धरम परिवर्तन करवाते हैं , पर ये सच्चाई है , मुझे धरम परिवर्तन से भी कोई समस्या नहीं है , पर उनके तरीके में जरूर है , वो जयादातर दलित , भील जाति के लोग या गरीबों लोगों को अपना निशाना बनाते हैं , और दुःख की बात ये है की वो अन्य धर्मों के लोगों के खिलाफ घृणा भी भरते हैं .वैसे धरम परिवर्तन भी एक छोटी सोच है .
मैं इन सभी लोगों से कहना चाहूँगा की मेरे मन किसी भी धरम के प्रति घृणा नहीं है . और मैं चाहता हूँ की विश्व एक शांति जगह बने . ना की युध भूमि . .
Thursday, February 11, 2010
लोकतान्त्रिक गुंडागर्दी
आज कल शिवसेना और शाहरुख़ खान के बीच की लड़ाई हर जगह छाई हुई है , कई लोग खुश हैं , कई लोग दुखी हैं , दरसल हमारा सौभाग्य है की हम लोकतंत्र है , तभी चाहे वो रिक्शेवाले का बेटा ,बेटी हो , चाहे वो राजा रानी का बेटा सभी एक हैं , सभी को सामान रूप से आगे बढ़ने के हक़दार हैं , दुर्भाग्य ये है की जिस तरह हमने सरकार के लिए काम करने वालों के लिए नियम बनाये की गर चपरासी बनाना है तो कितनी शिक्षा जरूरी है ,कौन सा एक्साम पास करना ,चाहे जो एक बड़े अधिकारी बनने के लिए ,सब कुछ नियमानुसार होता है , पर जब बात इन नेताओं की आती है , तो चाहे जो अंगूठा छाप हो चाहे वो बहुत पढ़ा लिखा हो सब एक ही कतार में खड़े हैं , बस उन्हें लोगों का समर्थन होना चाहिए , इसके फल स्वरुप आज हमारे देश में हर दूसरा आदमी एक पार्टी लेकर खड़ा हो जाता है , फिर देखो इनके फरमान , किसी को अपनी जाति को ऊपर लाना है , किसी को अपने धरम को ऊपर लाना है , किसी को अपनी भाषा को ऊपर लाना है , और उसके लिए चाहे लोगों को मारना पड़े , घर फूकना पड़े , गाड़ियाँ जलानी पड़े , सब कुछ करते हैं , हम लोकतंत्र हैं ना ,यहाँ सब को सब कुछ कहने का अधिकार है , "लोकतंत्र " क्या यही सोच कर गाँधी , नेहरु ,आजाद , भगत सिंह , नेता जी ने इस देश को आजाद करवाया था , कितनी शर्म की बात जिस जनता की बात ये सब करते हैं , वो तो केवल इनकी गुंडागर्दी का शिकार ही बनती है , मुझे समझ में नहीं आता की क्या इस देश में सही लोग मर गए हैं , या सो रहे हैं , इन गुंडों का जवाब दिया जाना बहुत जरूरी है , वर्ना ये लोकतान्त्रिक गुंडा गर्दी तानाशाही में परिवर्तित हो जाये . अभी समय है कुछ किया जाना चाहिए .
Thursday, February 4, 2010
आम आदमी बनाम ताकतवर
कभी कभी आम आदमी के बारे सोचता हूँ , इन दो शब्दों को ध्यान से देखिये इनमे आपको मजबूरी नजर नहीं आती " आम आदमी " क्या है ये आम आदमी! सोचिये ? नहीं समझ में आ रहा, मैं बताता हूँ , दरसल आम आदमी हर वो आदमी है , जो जीना चाहता है , इसके लिए वो प्रयास करता , मेहनत करता है और भगवान् से रोज प्रार्थना करता है की वो सपना पूरा हो , वो चाहता है की वो जिन्दा रहे , उसके बच्चे जिन्दा रहे ,उसके चाहने वाले जिन्दा रहे , और ना ही वो जिन्दा रहे वो खुश भी रहे , इसके लिए अगर उसके कुछ समझौते करने पड़े तो वो भी वो ख़ुशी से करता है , लेकिन दिल में कही उसके ये बात जरूर रहती है वो कमजोर है , वो समाज के ताकतवर लोगों की कृपा पर जिन्दा है , मानव इतहास उठा कर देखें तो आप पायेंगे इन ताकतवर लोगों ने हमेशा इन कमजोर आम आदमियों की खुशियों को कुचला है , बिना वजह किसी गलती के ये आम आदमी ही शिकार बनता है , और ये जो ताकतवर शब्द है ये भी विचारनीय शब्द है , दरसल इसी शब्द के चक्कर में तो ये दुनिया पागल है , हर कोई ताकतवर बनना चाहता है , इसी शब्द ने पूरी दुनिया में जो तबाही मचाई है और वो इतिहास में दर्ज है इसमें कोई दो राय नहीं है , और सबसे बड़ा शिकार आम आदमी ही रहा है , दरसल ज्यादातर ताकतवर लोगों से मुझे घृणा है , मेरी राय में उनकी सनक , उनका छोटा दिमाग ,दिल, इस आम आदमी की हालत का कारण रहा है , मैं इतिहास में ज्यादा पीछे नहीं जाऊँगा , पिछली सदी में हुए दोनों विश्व युध , जर्मनी में यहूदियों का नर सिंघार , भारत में हुए बटवारे के वक़्त हुए दंगे ,और बाद में हुए युध , दंगे , आतंकवादी घटनाएं कुछ सनकी ताकतवर लोगों का नतीजा हैं , फिर भी हम उसे भूल गए , अब भी हमें इनसे घृणा नहीं हुई है , हमने अभी तक उनसे सीख नहीं ली है , मैं अपने देश के इतिहास पर बहुत गर्व नहीं करता ,पर मुझे अपने भविष्य के लिए जो इतिहास बनाना है उस पर आगे लोग गर्व कर सकें , और वो इतिहास इन ताकतवर सनकियों से मुक्त होगा , हमे ऐसा भारत बनाना है जिसमे आम आदमी कमजोर नहीं ताकत वर हो . पर इसके लिए आम आदमियों को नीद से जागना होगा , इसलिए जागो और आगे बढ़ो , और ऐसे घटिया ताकतवर लोगों का मुह तोड़ दो .
Sunday, January 31, 2010
मैं आम आदमी हूँ आओ मुझे मारो
मैं आम आदमी हूँ , मैं किसी पार्टी का दिया हुआ नाम नहीं हूँ , मैं तब से हूँ जब से दुनिया बनी , मैं गवाह हूँ दुनिया के बनने , उसके आगे बढ़ने और उसके अभी तक के सफ़र का ,और मैं गवाह रहूँगा तब भी जब ये दुनिया ख़तम हो रही होगी , मैं तब भी था जब रामायण हुई , मैं तब था जब महाभारत हुआ , मैं दोनों विश्व युध का गवाह भी रहा हूँ , मैंने भारत का बटवारा भी देखा है , और उसके बाद की त्रासदी को भी देखा है , मैंने देखा बापों को अपनी ही बेटियों का सर कलम करते हुए , मैंने देखा है लाखों की संख्या में लोगों को गैस चैम्बर में घुट -घुट कर मरते हुए , और मैं आज भी गवाह हूँ उन सब त्रासदियों का ,आतंकवादी घटनाओ का , और बहुत कुछ का जो घट रही हैं , क्योंकि मैं ही हूँ जिसने ये सब झेला है , और झेल रहा हूँ , फिर भी अनजान हूँ , कोई मुझे नहीं जानता, कोई मेरी परवाह नहीं करता . इतना कुछ झेलने के बाद मेरे मन में कुछ सवाल हैं .
जब महाभारत हुआ हममे से कुछ ने पांडवों का साथ दिया , कुछ ने कौरवों का साथ , पता नहीं कितने करोणों लोग मरे गए , अगर पांड्वो ,कौरवों को जमीन के लिए लड़ना था थो खुद कहीं कट मरते ,हमें क्यों शहीद किया ,जब विश्व युद्ध हुए तब भी हम ही थे जिसने खोया , हमारे माँ -बापों ने अपने बेटों को खोया , हमारे बच्चों ने अपने बापों को खोया , हमारी बीबियों ने अपने पतियों को खोया . किसी एक सनकी की सनक से हम गैस चैम्बरों में झोक दिए गए , कुछ की सनक से बटवारा हुआ तब भी हम ही थे जिन्होंने सबसे ज्यादा झेला ,माओं ,बहनों की इज्जत लूटी गयी , बापों ने अपने ही बेटियों के , पतियों ने बीबियों के सर कलम कर दिए ,ताकि उन्हें उस वहसीयत का शिकार ना होना पड़े , इन सब में हमारी क्या गलती थी , अब भी हमारी क्या गलती है जब कोई लाल झंडा लेकर कोई काला , कोई भगवा लेकर ,कोई धरम के नाम पर ,कोई भाषा के नाम पर कोई छेत्र के नाम पर तो कोई बिना किसी नाम पर हमे अपना शिकार बना रहा है , मैं हजारों साल पहले भी आश्चर्य में था ,अब भी हूँ , मुझे आज तक समझ नहीं आया की मेरी गलती क्या थी , और अब भी मेरी गलती क्या है ? लेकिन फिर भी मैं था , हूँ , रहूँगा .
Friday, January 29, 2010
हाय ये गरीबी
हम सब २१ वी सदी के भारत में हैं , ये भारत एक तरफ तो हमे एक गर्व महसूस करता है , दूसरी तरफ ये सवाल भी खड़ा करता है , क्या हम उस मुकाम तक पहुच पाएं हैं की हम ग्रवान्वित हो सकें , मैं उन लोगों की बात कर रहा हूँ , जिनके बारें में बात तो सभी कर रहे हैं ,आवाज़ भी उठा रहे हैं , पर ये कैसी आवाज़ है की उन कानो तक नहीं पहुच पा रही जिनकी हम बात कर रहे , ये है वो गरीब आदमी जिसे ना भारत उदय का पता है , ना अस्त का ,उसे ना उनका पता है ,जो उनकी बात कर के वोट मांगते हैं ,या फिर ना उनका पता है जो उनकी वजह से लोगों को मारते हैं , ना उनका पता है जो टी.वी पर बैठ कर ,अख़बारों में , ब्लॉग पर उनके बारे में बात करते हैं ,अरे उसे तो अपने जीने मरने का पता नहीं है , ये सवाल सब करते हैं की "हाय ये गरीबी " ,पर ये गरीबी का सवाल भी शायद उन्ही तक सीमित है क्योंकि जवाब अभी तक मुझे नहीं मिला . मैं आप सभी से घटना को बाटना चाहूँगा .मैं एक दिन नगर बस से अपने कॉलेज जा रहा था ,तभी कुछ मजदूरों ने उस बस को रोका और पूछा भैया फैजाबाद जाओगे , मैंने उन्हें ध्यान से देखा उनकी आँखें बड़ी आश्चर्य में थी ,उन्हें समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें , उन्हें तो शायद ये भी नहीं पता था की ये फैजाबाद है कहाँ ,ये ऐसे गरीब थे जिन पर अभी ना कोई सरकार पहुची है ना कोई ऐन जी ओं पंहुचा ना कोई टी वी चैनल और ना कोई और उनकी जिन्दगी का मकसद केवल पेट भरना है , अब अपने आप को उस जगह रख कर देख लीजिये , मतलब समझ आ जायेगा गरीबी का , मैं बहुत अच्छा लेखक नहीं हूँ शायद सही से लिख नहीं पा रहा , वैसे भी मेरा मकसद दो आंसू गिरवाकर वाह- वाही लूटना नहीं है मेरी दरख्वास्त तो बस इतनी सी है की केवल सवाल ना पूछिए , उसके जवाब भी खोजने की कोशिश करिए .
Saturday, January 23, 2010
कांग्रेस एक सेकुलर पार्टी नहीं है
बहुत दिनों से एक शब्द जो मेरे दिल के काफी करीब है " सेकुलर " के बारे में कुछ लिखना चाह रहा था , दरसल मैं ये बात पूरे विश्वास और दृढ़ता से कह रहा हूँ की भारत देश में लगभग सभी सांप्रदायिक हैं , अब जो लोग सीना ठोक कर अपने आप को सेकुलर कहते नज़र आते हैं वो कहेंगे आप ये कैसे कह रहे हैं , तो मेरे हिसाब से सेकुलर वो है जो धरम , जाति के हिसाब से एक दूसरे में कोई अंतर ना करता हो , जिसे दूसरे धरम के लोगों से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध बनाने से कोई परहेज ना हो और धरम उसके लिए मात्र इश्वर में आस्था का जरिया भर हो . और संविधान में जो परिभाषा दी गयी है वो एक दम गलत है , संविधान में परिवर्तन की आवश्यकता है . अब आते हैं कांग्रेस पर सबसे ज्यादा यही लोग सेकुलर नामक शंख बजाया करते हैं , ये लोग सबसे बड़े साम्प्रदयिक हैं , अगर भाजपा सांप्रदायिक है तो उसी सिक्के के दूसरे पहलू ये भी हैं , मेरा मानना है की कोई भी सेकुलर व्यक्ति अपना डंका नहीं पीटता जैसे ये पीटते हैं , लोग सामन्यता सेकुलरिस्म को हिन्दू -मुस्लिम धर्मों से जोड़ते हैं , और मुझे ये भी लगता है की लोग यहाँ बहुत जल्दी भूल भी जाते हैं , याद करिए १९८४ के सिख दंगे इनके पीछे किसका हाथ था , क्या कांग्रेस के लोग इसके पीछे नहीं थे , ३ दिन हमारी देश की राजधानी में किस तरह दंगो का नंगा नाच हुआ ये हमे मालूम हैं , और दंगा पिरितों के साथ इन्साफ हुआ ? नहीं -नहीं हुआ . इस बात की क्या गारंटी है की ये लोग समय आने पर फिर ऐसा नहीं करेंगे , पूरे देश को सिख संप्रदाय का शुक्रिया अदा करना चाहिए की वो इस जख्म को लेकर भी आगे बढ़ गए , वर्ना सिख आतंकवाद भी हमारे सामने खड़ा होता . अब बारी आती है हमारे गृह मंत्री की मिस्टर पी चितंबरम की बारी पहले कई दिनों से मैं उनके मुह से हिन्दू आतंकवाद की काफी चर्चा सुन चुका हूँ , क्या ये हमे बता सकते हैं की ये देश के किस हिस्से में पनपा है हम भी तो जाने . मैं उनको एक सलाह भी देना चाहूँगा की ऐसा करना बंद करिए वर्ना कोई हिन्दू आतंकवादी कहीं आपको ही शिकार ना बना ले , मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना है हिन्दू आतंकवाद जैसे कोई चीज अभी तक तो नहीं है पर आप ऐसा क्यों चाहते हैं की ऐसा हो , यहाँ लोगों को भरकाने वालों की कमी नहीं है कृपा करके ये प्रोपोगंडा बंद करिए .कांग्रेस को मेरी सलाह बस इतनी है की सेकुलर बोल के मत बनिए ये आप के बस की बात नहीं . इसके आलावा आप के पास कई मुद्दे हैं उनपर काम करिए . सेकुलर होना आपके बस की बात नहीं . मैं ये इस लिए भी कह रहा हूँ क्योंकि धर्म की बात कर लोग बहक जल्दी जाते हैं , चाहे वो सेकुलर हो या सांप्रदायिक .
बचपन
एक छोटे बच्चे के बारे में सोचिये , अच्छा अपने बचपन के बारे में सोचिये , बचपन में आप क्या बनाना चाहते थे , सुपर मैन
ही -मैन , हनुमान जी , बस आँख बंद करते थे और उड़ जाते थे अपनी ही दुनिया में . अपने माँ , बाप , बहन , भाई सबके दुखों को दूर कर देते थे , जो घर में नहीं होता था , वो सब हमारे सपने में होता था . टाफियों और चॉकलेट्स का तो भरमार होता था , खूब चाव से खाते थे हम उन्हें , और सोचते थे की बड़े होने पर अपने घर में ही दुकान रखेंगे जब मन किया खा लिया . अब सोचिये
क्या वो बच्चे जो कश्मीर में , पाकिस्तान में , गज़ा पट्टी , अफ्रीका में रहते हैं उनके सपने भी हमारे जैसे होते होंगे , हाँ वो भी हमारे जैसा ही सोचते होंगे . सपने हमारे भी टूटते हैं उनके भी, पर अंतर कहाँ है अंतर है की जब हम बड़े हुए हमे अपने माँ बाप , भाई बहन का साथ मिला , उनमे से कुछ खुश नसीब ही होंगे जिन्हें ये सब नसीब होता होगा , जब हम बड़े हुए सुपर मैन तो नहीं पर पर मैन तो बन ही गए , वो क्या बन पाए ये तो उन्हें भी नहीं पता . जब सपने टूटते हैं तो बहुत दुःख होता है , उनके सपने टूटने में तो उनका भी दोष नहीं था , बस दोष इतना की गलत टाइम पर गलत जगह पैदा हो गए , जब बच्चे, बच्चे होते हैं अगर उन्हें पता हो की आगे चलकर उनका भविष्य ऐसा होने वाला है शायद वो जीने से ही मना कर दें , अब दिमाग में आता है की इसका जिम्मेदार कौन है ,तो मेरे दिमाग में आता है की जिम्मेदार हम हैं , हमने आँख जो बंद कर ली है दूसरे का घर में आग लगी तो हमे उससे क्या , ये नहीं सोचा की उसमे भी ऐसे ही छोटे छोटे बच्चे होंगे . बड़ा होना इतना खतरनाक होता है , मुझे बड़ा आश्चर्य होता है , इतनी दीवारें खड़ी कर दी हैं हमने की हम खुद दीवार के उस पार नहीं देख पाते .शायद अब हमने आँखें बंद करना बंद कर दिया है , सपने देखना बचपना लगता है , या हम डरने लगें हैं , टूटने का डर जो है अरे भाई इसके पैसे थोड़े लगते है , अपने बचपन को याद करो , या अपने बच्चों को ही देख लो शायद सपने देखना आ जाये , क्योंकि ये सपने भी कहीं ना कहीं हमने कुछ सिखाते हैं , अपनी दीवार से दूर ले जाते हैं, कर के देखो बड़ा आराम मिलेगा और जवाब भी .
Monday, January 18, 2010
एक बच्ची की अद्दभुत कहानी और हमारे लिए कुछ.
आज कुछ सोचते सोचते अचानक एक कहानी याद आ गयी तो मैंने सोचा की चलो इसे अपने देश वासियों के साथ बाटूँ .
दरसल ये कहानी है एक नौ साल की एक अमेरिकन लड़की की है जो पोलियो ग्रस्त थी , अपने साथियों को स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेते देखा तो अपने स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर से कहा की मैं भी इस दौड़ में हिस्सा लेना चाहती हूँ , टीचर ने बिना कुछ सोचे समझे उससे कहा की अगर तुम दौड़ना चाहती हो तो तुम दौड़ो , वो लड़की दौड़ी और आखरी आई , फिर भी वो दौड़ना चाहती थी तो उस टीचर ने उसे मना नहीं किया और कई बार दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद जानते हैं उस लड़की ने उन्नीस साल की उम्र में क्या हासिल किया , वो ओलंपिक्स (१९५८) में दौड़ी और चार स्वर्ण पदक जीते , यही कारनामा उसने फिर से १९६२ में दोहराया , अब आप सोच रहे होंगे वो सामान्य व्यक्तियों का ओलंपिक्स नहीं होगा तो आप गलत हैं उसकी प्रतियोगिता आप हम जैसे सामान्य लोगों से ही थी .
अब आप सोच रहे होंगे आखिर मैं आपको ये क्यों बता रहा हूँ , तो चलिए मैं बताता हूँ .
कारण नंबर एक सोचिये उनके माँ - बाप कैसे होंगे की अपनी बिटिया को पोलियो होते हुए भी दौड़ने दिया , अब भारतीय होते हुए हम आप , या हमारे माँ बाप क्या करते ?
दूसरा वो स्कूल टीचर कैसा होगा जो ये जानते हुए भी की वो लड़की दौड़ कर जीत नहीं सकती फिर भी दौड़ने दिया , हम आप क्या करते ?
अब वो लड़की जो बार - बार हारती थी फिर भी हार नहीं मानती थी . अब एक भारतीय होते हुए क्या हममे भी ऐसे लोग हैं जो ऐसा सोच सकते है , या ऐसा करने का साहस कर सकते हैं ?
अब सोचिये हम इतना पीछे क्यों हैं ?
चलिए मैं बताता हूँ , जो मैंने यहाँ देखा है , माँ -बाप के रूप में क्या हम ऐसा सोच सकते हैं , शायद नहीं हम यहाँ पर उसे समझाने लगते की तुम नहीं दौड़ सकते , आदत हैं ना हमारी निरीह दिखने की .
हमारे टीचर होते तो शायद डाट के ही भगा देते .
और उस लड़की जैसे भी हमारे यहाँ एक भी नहीं है वरना हम सौ अरब की आबादी के देश में ओलंपिक्स में एक भी स्वर्ण पदक नहीं ला पाते .
अब कई लोग कहेंगे भारत एक गरीब देश है यहाँ पर लोग रोटी ही खा ले बड़ी बात , लो कर दी ना भिखारी वाली बात ! हम इतने कमजोर और निरीह क्यों हैं ?
दूसरा हमारे देश की काफी बड़ी आबादी गरीब है , लेकिन काफी बड़ी आबादी में लोग पैसे वाले भी हैं , उनमे से कोई क्यों नहीं आगे बढ़ता और देश का नाम रौशन करता ?
हमे पैसे से अमीरी का पता नहीं पर ये पता है की भारत में लोगों को दिमाग से काफी अमीर बनना है ,
सोचिये
Sunday, January 17, 2010
खेल और भारत
काफी दिनों से कुछ लिख नहीं पाया था , आज वक़्त मिला तो समझ नहीं आ रहा था की क्या लिखूं , फिर एक महानुभाव के ब्लॉग को पढ़ा तो समझ में आ गया की क्या लिखना है , जब मैं उनके ब्लॉग को पढ़ रहा था तो मुझे लगा की आवाज इनकी नहीं पूरे हिंदुस्तान की है , और फिर ये भी लगा की हमारे देश की आवाज इतनी गलत कैसे हो सकती है , दरसल मैं बात कर रहा हूँ अपने देश में खेल और खेलों की दुर्दशा के बारे में , वो हमारे यहाँ प्रसिद्ध कहावत है ना " पड़ोगे -लिखोगे बनोगे नवाब , खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब " . दरसल बचपन से ही मुझे इस कहावत से चिढ थी , मुझे समझ नहीं आया हमारा देश ऐसा क्यों है . फिर यहाँ लोग कहते हैं की हम गरीब हैं ! हम गरीब क्यों हैं इसके बारे में कोई सोचा नहीं चाहता ? मैं ये कई लोगों से सुन चुका हूँ की अगले साल होने वाले कॉमन वेल्थ गेम्स इस गरीब देश के लिए फ़िज़ूल खर्ची है , हम अभी गरीब हैं हमे गरीबी हटाने पर ध्यान देना चाहिए , पर गरीबी हटाएं तो कैसे ? क्या जब हम इतनी बड़ी प्रतियोगिता करते हैं तो लोगों इससे रोजगार नहीं मिलता ? क्या हमारे देश में पर्यटन की बढोतरी नहीं होगी ?और क्या हमारे देश में जो खिलाडी अपनी जिन्दगी पर खेल कर इस देश का नाम रोशन कर रहे है वो इस देश के नहीं हैं , शायद हम ऐसा नहीं सोचते तभी १ अरब की आबादी वाले देश में ओलंपिक्स में एक स्वर्ण पदक आता है , वहीँ हमसे भी कई गुना गरीब देश केन्या ८ स्वर्ण पदक जीतता है ! अब क्या करें हम तो गरीबी हटा रहे हैं न कुछ न कर- कर , अरे भाइयों गरीबी खाली रोने से नहीं मिटेगी काम करने से मिटेगी , और अब खेल खेल नहीं हैं , इस बात को समझो, आगे बढ़ो , मेहनत करो .
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